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________________ भुजगारबंधे परिमाणाणुगमा १३३ परिमाणाणुगमो २८७. परिमाणाणुगमेण दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं क० अवत्त० कॅत्तिया ? संखेजा । भुज० अप्प० अवढि आउ० सवपदा केत्तिया ? अणंता। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं एइंदि० वणप्फदि-णियोद०-कायजोगि-ओरालि०-ओरालियमि०कम्मइ०-णबुंस०-कोधादि०४-मदि०-सुद० असंज० अचक्खु०-तिण्णिले० भवसि० अब्भवसि०-मिच्छा०-असण्णि-आहार ०-अणाहारग ति। २८८. गिरएसु सम्वेसिं अट्ठण्णं क. सव्वपदा केत्तिया' ? असंखेंजा। एवं सव्वणिरय-मणुसअपज०-देवा याव सहस्सार त्ति । मणुस. सत्तण्णं क. अवत्त. संखेजा । सेसपदा आउ० सव्वपदा असंखेजा। एस भंगो पंचिंदि०-तस०२-पंचमण.. पंचवचि०-इत्थि पुरिस०-आभि० सुद०-ओधि०-चक्खुदं०-ओधिदं०-सम्मादि०-वेदग०उवसम-सण्णि त्ति । मणुसपञ्जत्त-मणुसिणीसु अण्णं क. सव्वपदा संखेंजा। एवं सव्वट्ठ०-आहार-आहारमि०-अवगद०-मणपज०-संज०-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुदुमसंप० । आणदादि याव उवरिमगेवजा त्ति आउ. सव्वपदा संखेंजा। सेसाण सव्वपदा असंखेंजा । एवं सुक०-खइग० । सेसाणं णिरयभंगो । परिमाणानुगम २८७. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे सात कर्मों के प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदवाले जीव तथा आयुकर्मके सम्र पदवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तियंच, एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। २८८. नारकियोंमें सब आठों कर्मों के सब पदवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी मनुष्यअपयाप्त, सामान्य देव और सहस्त्रारकल्प तकके देवोंके जानना चाहिए। मनुष्यों में सात कर्मों के प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। तथा सब पदोंके और आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। यह भंग पंचेन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें आठों कर्मों के सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, श्राहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिए। आनतसे लेकर उपरि प्रैवेयकतकके देवोंमें आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष कर्मों के सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले और क्षायिक सम्यग्दृष्टिजीवोंके जानना चाहिये । शेष मार्गणाओंमें नारकियों के समान भंग है। इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ। १ ता. प्रती केवडि० इति पाठः। . ता० प्रती अणा (आण) दादि याव उवरिम के (गे) के. इति पाठः । ३ ता. प्रतौ असंखेजा इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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