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________________ १०६ सव्वलो० | गोद० जह० छच्चों०' । अज० सव्वलो० । वेद० णामा० जह० अज० केवडि खैतं फोसिदं १ सव्वलो० । आउ० जह० अज० खैत्तभंगो । २३९. सासणे घादि०४ जह० अट्ठ० । अज० अट्ठ-बारह० । वेद० णाम० जह० अज० अट्ठ-बारह० । गोद० जह० खेत० । अज० अट्ठ-बारह० | आउ० जह० अज० अट्ठ० । सम्मामि० सत्तण्णं क० जह० अज० अट्ठचोट्स ० । एवं फोसणं समत्तं । कालपरूवणा कालं दुविधं- -जह० उक्क० । उक्क० पगदं । दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० कालपरूवणा २४०. बटे चौदह राजू अथवा लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने सत्र लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । विशेषार्थ - अभव्यों में द्रव्यसंयत मनुष्योंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभाग बन्धक जीवोंका स्पर्शन वह भी कहा है। शेष कथन सुगम है । २३६. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोंके जवन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभाग बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों में सात कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । विशेषार्थ - सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध गतिके जीव करते हैं और ऐसी अवस्थामें सासादनसम्यग्दृष्टियोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बठे चौदह राजू उपलब्ध होता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। इनमें गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागसातव पृथिवीके सर्वविशुद्ध नारकी करते हैं और इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है और इनका क्षेत्र भी इतना ही है, अतः यहाँ गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान कहा है। शेष कथन सुगम है । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें सातों कर्मोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन इनके स्वामित्वको देखते हुए कुछ कम आठ बटे चौदह राजू बन जाता है, इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है। इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ । कालप्ररूपणा २४०. काल दो प्रकारका है जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा १ ता० प्रतौ गोद० छो० इति पाठः । २ आ० प्रतौ अट्ठबारह० । सम्मामि० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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