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________________ १०६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे २३६. संजदासंजदे धादि०४-गोद० जह० खेत्तभं० । अज० छच्चों । सेसाणं जह. अज० छ । आउ० खेत० । __ २३७. णील-काउ० घादि०४ जह० खेत्तः । अज० सव्वलो। सेसं खेतभंगो । तेऊए धादि०४ जह० खेत्त० । अज० अट्ठ-णवचौँ । वेद०-णामा०-गोद० जह० अज० अट्ठ-णवचों । आउ० जह० अज० अट्ठचौ । एवं पम्माए वि । णवरि अट्ट० । सुक्काए घादि०४ जह० खेत्तभंगो । अज०छच्चों । सेसाणं जह• अज० छच्चों । २३८. अब्भवसि० घादि०४ जह• अट्ठ० अथवा लोग. असं० । अज० जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। विशेषार्थ-इन तीन ज्ञानों में अतीतकालीन स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू है, अतः चार घातिकर्मों के अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका और शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम ही है। २३६. संयतासंयत जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयुकर्मका भंग क्षेत्रके समान है। विशेषार्थ-संयतासंयत जीवोंका अतीतकालीन स्पर्शन कुछ कम छह बट चौदह राजु है, अतः इनमें चार घातिकर्म और गोत्रके अजवन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका तथा वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका और आयुकर्मके जवन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है, यह स्पष्ट ही है। २३७. नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागक बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कोंका भंग क्षेत्रके समान है। पीतलेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय. नाम और गोत्रकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंमें भी जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके कुछ कम आठ बटे राजू स्पर्शन कहना चाहिये। शुक्ल लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-किस लेश्यावाले जीवका क्या स्पर्शन है और स्वामित्व क्या है,इसका विचार कर यहाँ स्पशन ले आना चाहिए। विशेष वक्तव्य नहानस यहाँ हमन अलग-अलग विचार नहीं किया। २३८. अभव्य जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुल कम आठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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