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________________ महावंधे अणुभागबंधाहियारे जह० अजः सव्वलो । एवं ओघभंगो कायजोगि-कम्मइ०-णकुंसकोधादि० ४मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खुदं०-किण्णले०-भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छा० -आहार अणाहारग ति । २०६. तिरिक्खेसु धादि०४-वेद आउ०-णाम० मूलोघं । गोद० जह० लो० संखें । अज० सव्वलो० । एवं ओरालि०-ओरालियमि०-णील० काउ० असणि ति। २०७. एइंदिएसु धादि०४-गोद. जह० लो० संखे० । अज० सव्वलो। सेसाणं मूलोघं । एवं बादर-पज्जत्त-अपजत्त० । णवरि आउ० ज० अज० लो० संखेंज. । सव्वसुहमाणं अट्ठण्णं कम्माणं जह० अंज. सव्वलो० । पुढवि०-आउ० घादि०४ ओधभंगो। सेसाणं सव्व० दो पदा सव्वलो० । एवं वणप्फदि-णियोद० । वादरपुढ०. आउ० तेसिं अपज० घादि०४ ज० लो० असंखें । अज० सबलो० । आउ० जह० अज० लो० असं० । सेसाणं दो' पदा सव्वलो० । तेउ० घादि०४-गोद० जह० लो० असं० । अज० सव्वलो० । सेसाणं पि दो पदा सबलो० । बादरतेउ० तस्सेव अपज० आयु और नाम कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्याष्टि, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। २०६. तिर्यश्चोंमें चार घातिकर्म, वेदनीय, आयु और नामकर्मका भङ्ग मूलोधके समान है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । इसी प्रकार औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिये ।। २०७. एकेन्द्रियों में चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का सब लोक क्षेत्र है। शेष कर्मोंका भङ्ग मूलोघके समान है। इसी प्रकार बादरएकेन्द्रिय, वादरएकेन्द्रियपर्याप्त और बादरएकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। सव सूक्ष्म जीवोंमें आठों कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। पृथिवीकायिक और जलकायिक जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भङ्ग ओघके समान है। शेष कर्मों के दो पदोंका सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंके जानना चाहिये। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और इनके अपर्याप्त जीवोंमें चार घाति कर्मों के जयन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का सब लोक क्षेत्र है। आय कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। शेष कर्मों के दो पदवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। अग्निकायिक जीवोंमें चार घाति कर्म और गोत्र कर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। शेष कर्मों के दोनों ही पदवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। बादर अग्निकायिक और उनके अपर्याप्त जीवों में आयुकर्म के जघन्य और अजघन्य १ ता० प्रतौ सेसाणं पि दो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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