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________________ भागाभागपरूवणा वंधगा य अबंधगा य । सव्वबादरअपज्ज-सुहुम०-सव्ववणप्फदि-णियोद०-पुढ०-आउ० धादि० ४ उक्कस्सभंगो। सेसाणं जह० अज० अत्थि बंधगा य अबंधगा य । तेउ०वाउ०-बादरतेउ०-वाउ० घादि०४-गोद० उक्कस्सभंगो। सेसाणं जह० अजह० अत्थि बंधगा य अबंधगा य । सेसाणं णिरयादीणं सवसिं सव्वभंगा उक्करसभंगो। एवं णाणाजीवेहि भंगविचयं समत्तं । १७ भागाभागपरूवणा १८६. भागाभागं दुवि०--जह० उक्क० । उक० पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० अढण्णं कम्माणं उक्क० अणुभागबंधगा जीवा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतभागो। अणुक्क० अणुभाग० जीवा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अर्णता भागा' । एवंओघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि-ओरालिय०-ओरालियमिस्स०-कम्मइ०-णवंस.. कोहादि४-मदि०-सुद०-असंज०-अचखुदं०-तिण्णिले०-भवसि० - अब्भवसि०-मिच्छादि०-असण्णि०-आहार०-अणाहारग त्ति । १८७. एइंदिय-वणप्फदि-णियोदेसु आउ० ओघं । सेसाणं उक्क० असंखेज्जदिभागो। अणुक्क० असंखेंज्जा भागा। अवगदवे० सत्तण्णं क० उक्क० संखेज्जदिभागो। अणुक्क० संखेंज्जा भागा। एवं सुहमसंप० छण्णं कम्माणं । सेसाणं असंखेज्जजीविगाणं उक्क० जीव हैं और नाना अबन्धक जीव हैं। सब बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म, सब वनस्पतिकायिक, निगोद, पृथिवीकायिक और जलकायिक जीवोंमें चार घातिकोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धके नाना बन्धक जीव है और नाना अबन्धक जीव हैं। अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धके नाना बन्धक जीव हैं और नाना प्रबन्धक जीव हैं । शेष नरकादि सब मार्गणाओंमें सब कर्मोंके सब भङ्ग उत्कृष्टके समान है। इसप्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय समाप्त हुआ। १७ भागाभागप्ररूपणा १८६. भागाभाग दो प्रकारका है जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे आठ कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? अनन्त बहुभाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। १८७. एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें आयुकर्मका भंग ओघके समान है। शेष कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बंधक जीव असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। अपगतवेदी जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बंधक जीव संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंके छह कर्मोकी अपेक्षा भागाभाग जानना चाहिये । शेष १ ता० प्रती अणंतभागो इति पाटः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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