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संणियासपरूवणा
सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णि० तं तु छट्टाणपदिदं० । णाम० णि० बं० णि० तं तु छट्टाणपदिदं । एवं आउ०- णाम । मोह० जह० बंध० छण्णं कम्माणं णि० बं० णि० अज० अनंतगुणन्भहियं ० । आउ० अबंध० । गोद० जह० बं० छण्णं क० णि० बं० णि० अज० अणंतगुणन्भहियं ० । आउ० अबंधगा । एवं ओघमंगो पंचिंदि० -तस० २- पंचमण० - पंचवचि०- कायजोगि - ओरालि० - लोभ० - आभि० - सुद० - ओधि० -मणपञ्ज०संजद ० - चक्खुदं ० - अचक्खुदं ० - ओधिदं० - भवसि ० - सम्मादि० खइग० - उवसम ०-सण्णि - आहारगति ।
१७८, णिरएसु णाणा० जह० अणुभा० घादीणं तिष्णं णि० बं० तं तु छट्टाणपदिदं बं० । वेद०-णामा- गोद० णि० बं० णि० अज० अणंतगुणन्भहियं ० । आउ० अबंध । एवं तिष्णं घादीणं । वेद० जह० अणु० बं० घादि०४ - गोद० णि० बं० अज अनंतगु० । आउ० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० तं तु छट्ठाणपदिदं० । णाम० णि० बं० तं तु० छडाणपदिदं । एवं आउ० । णामा-गोदाणं ओघभंगो । एवं सत्तमा पुढवीए तिरिक्खोघं अणुदिस याव सव्वट्ठ त्ति सव्वएइंदि० - ओरालि० - वेडव्वि०
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चार घातिकर्म और गोत्रकर्म का नियमसे बन्ध करता है, जो नियमसे अजघन्य अनन्तगुणे अधिक अनुभागका बन्ध करता है । आयुकर्मका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो वह नियमसे छह स्थान पतित अनुभागका बन्ध करता है। नामकर्मका नियम से बन्ध करता है, किन्तु वह नियमसे छह स्थानपतित अनुभागका बन्ध करता है । इसी प्रकार और नामकर्मकी मुख्यातासे सन्निकर्ष जानना चाहिये। मोहनीय कर्मके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव छह कर्मोंका नियमसे बन्ध करता है । जो नियमसे अजघन्य अनन्तगुणे अधिक अनुभागका बन्ध करता है । वह आयुकर्मका बन्ध नहीं करता । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव छह कर्मोंका नियमसे बन्ध करता है। जो नियम से अजघन्य अनन्तगुणे अधिक अनुभागका बन्ध करता है। वह आयु कर्मका बन्ध नहीं करता । इसी प्रकार के समान पचेन्द्रियद्विक, सद्विक, पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, लोभकषायवाले, श्राभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञांनी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, चक्षुदर्शनी, अचतुदर्शनी अवधिदर्शनी, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, उपशम सम्यग्दृष्टि, सी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
१७८. नारकियों में ज्ञानावरणके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तीन घतिकर्मीका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह छह स्थान पतित अनुभागका बन्ध करता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका नियमसे बन्ध करता है जा नियमसे अजघन्य अनन्तगुणे अधिक अनुभागका बन्ध करता है । वह आयुकर्मका बन्ध नहीं करता। इसी प्रकार तीन घातिकमोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । वेदनीय कर्मके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव चार घातिकर्म और गोत्रकर्मका नियम से बन्ध करता है। जो नियमसे जघन्य अनन्तगुणे अधिक अनुभागका बन्ध करता है । आयुकर्मका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो वह नियम से छह स्थान पतित अनुभागका बन्ध करता है । नामकर्मका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह छह स्थान पतित अनुभागका बध करता है। इसी प्रकार आयुकर्मकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये । नाम और गोत्र कर्मकी मुख्यतासे सन्निकर्ष के समान है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवी, सामान्य तिर्येच, अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देव, सब एकेन्द्रिय,
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