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उक्कस्ससत्थाणबंधसणुियासपरूवणा सत्य-तस०४-अथिरादिछ -णिमि० णिय० ० । तं तु०। णिरयगदि-तिरिक्वगदि-ओरालिय वेउव्विय०-दोअंगो०-असंपसत्त०-दोआणु०-उज्जो सिया० । तं तुः । एवं पंचिंदियजादिभंगो तेजा-क-हुंड-वरण ४-अगु०४-पसत्थ०-तस०४अथिरादिछ०-णिमिण त्ति । पंचसंठा-पंचसंघ० ओघं।
७७. आदाव. उक्क हिदिवं० तिरिक्खगदि-ओरालिय-तेजा-क-हुंड. वएण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-बादर-पज्जत्त-पत्तेय-अथिरादिपंच-णिमि. णि बं० संखेजदिमागू० । एइंदिय-थावर. णिय० । तं तु०। पसत्थवि०-सुभग-सुस्सर
आदेज. ओघ । सुहुम-अपज्जत्त-साधार० ओघं । गवरि अपज्जत्तस्स एइंदि०थावर० सिया० । तं तु० । अस्थिर आदि छह और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है। जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यन तक स्थितिका बन्धक होता है। नरकगति, तिर्यञ्चगति, औदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन, दो आनुपूर्वी और उद्योत इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अवन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी वन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यन तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय जातिके समान तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, प्रस चतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माण इनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अवलम्बन लेकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। पाँच संस्थान और पांच संहननके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अव लेकर सन्निकर्ष ओघके समान है।
७७. आतपकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पांच और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है। जो अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यन स्थितिका वन्धक होता है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावर इनका नियमसे वन्धक होता है। जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। किन्तु यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे एक समय न्यनसे लेकर पल्यका असंख्यातवोंभाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है। प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेय इनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अवलम्बन लेकर सन्निकर्ष ओघके समान है। तथा सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अवलम्बन लेकर सन्निकर्ष ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अपर्याप्तके साथ एकेन्द्रिय जाति और स्थावर प्रकृतियोंका कदाचित् वन्धक होता है और कदाचित् अवन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टको अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यनसे लेकर पल्यका असंख्यातयाँ भाग न्यूनतक स्थिति का बन्धक होता है।
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