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________________ बटिबंधे कोसणं ४६१ मणुसगदि-पंचिंदिय०-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०-छसंघ०-मणुसाणु०-'आदाव०-दोविहा०-तस-सुभग दोसर आदेज्ज-तित्थय०-उच्चा० सव्वपदा अट्टचोद्द० । सेसपगदीणं अवत्त० अट्ठचों । सेसपदा अट्ठ-णवचोद्द० । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । ६४०. एइंदिय-वणप्फदि-णियोद-पुढवीकाइय-आउ-तेउ०-बाउ०-सव्वसुहुमाणं मणुसायु० तिरिक्खोघं । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वलो० । बादरएइंदियपज्जत्त-अपज्ज. धुविगाणं सादादीण दस० च सव्यपदा सबलो० । इत्थिवे०-पुरिस०-चदुजादि-पंचसंठा०. ओरालि० अंगो छस्संघ० आदाव-दोविहा० तस सुभग दोसर आदेज्ज. सव्वपदा लोगस्स संखेंज्जदिभागो। णवंस० एइंदि० हुंडसं० परघा०-उस्सा-थावर सुहुम-पज्जत्त अपज्ज०. पत्तेय०-साधार०-भग० अणादें. ऍकवड्डि-हाणि-अवढि० सव्वलो० । अवत्त० लो० असंखें । दोआयु०-मणुसगदिदुग-उच्चा० सव्वपदा खेत्त० । तिरिक्खगदितिगं अवत्त० लोग० असंखें । सेसपदा असादभंगो। बादर उज्जो जसगि० सव्वपदा सत्तचोद्द० । णवरि बादर अवत्त० खेत० । अजस० अवत्त० सत्तचोद्द० । सेसपदा सव्वलो० । एवं तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय, तीर्थंकर और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियों के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिये। ६४०. एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद, पृथिवीकायिक,जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और सब सूक्ष्म जीवों में मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समानहै । शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और वादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें ध्रववन्धवाली प्रकृतियाँ और साता आदि दस प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, दो विहायोगति, स, सुभग, दो स्वर, और आदेयके सब पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपंसकवेद, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग और अनादेयकी एक वृद्धि, एक हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने सत्र लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु मनुष्यगतिद्विक और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तिर्यञ्चगतित्रिकके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग असातावेदनीयके समान है। बादर, उद्योत और यशः कीर्ति के सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि बादरके प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अयशाकीर्तिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार बादर १ मूलप्रतौ मणुसायु० आदाव-इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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