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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे मायाए दोसंज० तिण्णि भाणिदव्वं । सेसं ओघं। लोमे पंचणा०-चदुदंस०-पंचंत. अवत्तव्वं णत्थि । सेसाणं ओधं । ८७३. मदि०-सुद० धुविगाणं अत्थि तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० तिरिक्खोघं । सेसाणं ओघं । एवं विभंग०-अब्भवसि०-मिच्छा० । णवरि अब्भवसि०-मिच्छादि० मिच्छत्त० अवत्त० णत्थि । ८७४. आमि०-सुद० ओघि० पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज-पुरिस०-उच्चा०-पंचंत० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० १ अण्ण० । असंखेंजगुणवड्डि-हाणि-अवत्त. ओघं । मणुसगदिपंचगस्स तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० ? अण्ण । अवत्त० कस्स० ? अण्ण० पढमस० देवस्स वा णेरइगस्स वा । सादावे०-जस० असंखेंजगुणवड्डि-हाणिक ओघ । सेसाणं णाणावरणभंगो । णिद्दा पचलादीणं अवत्त० ओघं । सेसाणं णाणावरणभंगो। णवरि अवत्त० कस्स० १ अण्ण. परियत्तमा० । णवरि देवगदि०४-तिण्णिवड्डि-हाणिअवढि०-अवत्त० कस्स० १ अण्णः । एवं ओधिदंस-सम्मादि० -खइग०-वेदग०-उवसम० । णवरि वेदगे किंचि विसेसो। उषसमे वि असंखेंजगुणवड्डि० कस्स० १ अण्ण० उवसामगस्स परिवदमा० पढमस० देवस्स वा। असंखेंजगुणहाणि कस्स० १ अण्ण उवसाम० हैं। लोभ कषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका प्रवक्तव्य बन्ध नहीं है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। ५७३. मत्यज्ञानी और अताज्ञानी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी तिर्यञ्चोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार विभङ्गज्ञानी, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मिथ्यात्क्का अवक्तव्यबन्ध नहीं है। ८.४. श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यबन्धका स्वामी ओघके समान है। मनुष्यगतिपञ्चककी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती देव और नारकी जीव स्वामी है। सातावेदनीय और यशः कीर्तिकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका स्वामी ओषके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। निद्रा और प्रचला आदिकके अवक्तव्यबन्धका स्वामी ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर परिवर्तमान जीव स्वामी है। इतनी विशेषता है कि देवगति चतुष्ककी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वेदकसम्यक्त्वमें कुछ विशेषता है। उपशमसम्यक्त्व में भी असंख्यातगुणवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशमश्रेणीसे गिरकर प्रथम समयमें देव हुआ जीव स्वामी है। असंख्यातगुणहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक अनिवृत्तिकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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