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________________ बहिबंधे सामित्त अणियट्टि० । मणपजव-संजदे ओधिभंगो। णवरि खइगाणं पगदीणं असंखेंजगुणवडिहाणि-अवत्त० मणुसिभंगो। ८७५. सामाई०-छेदोव० पंचणा०-चदुदंस०-लोभसंज०-उच्चा०-पंचंत० अवत्त० णत्थि । सेसाणं मणवजवभंगो। परिहार० आहारकायजोगिभंगो। सुहमसंप० पंचणा०चदुदंस०-सादावे०-जस०-उच्चा०-पंचंत० संखेंजभागवड्डि० कस्स० १ अण्णदरस्स उवसाम० परिवद० । संखेंजभोगहा०-अवट्ठि० कस्स० ? अण्णद० उवसाम० वा खवगस्स वा। संजदासंजदेसु धुविगाणं तिण्णिवड्डि-हाणि-अवट्ठि० कस्स० ? अण्ण | सेसाणं परिहारमंगो। असंजदे धुविगाणं तिण्णिवड्वि-हाणि-अवट्टिदं कस्स० ? अण्ण। सेसाणं तिरिखोघं । णवरि तित्थयरं ओघं । एवं किण्ण-णील-काउ० ।। ८७६. चक्खुदं० तसपजत्तभंगो। किंचि विसेसो। तेऊए पंचणा० छदसणा०. चदुसंजल०-भय०-दु०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४-बादर-पज्जत्त-पत्तय०-णिमि०. पंचंत० तिण्णिवाड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० ? अण्ण० । थीणगिद्धितिग-मिच्छत्त-बारसक० अवतव्वं ओघं । सेसं णाणावरणभंगो। सेसाणं पगदीणं तिण्णिवड्ढि हाणि-अवढि० जीव स्वामी है । मनःपर्ययज्ञानी और संयत जीवोंमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि क्षायिक प्रकृतियोंकी असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यबन्धका स्वामी मनुष्यनियोंके समान है। ८७५. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका अवक्तव्यबन्ध नहीं है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मनःपययज्ञानी जीवोंके समान है । परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है । सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायकी संख्यातभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर गिरनेवाला उपशामक जीव स्वामी है ? संख्यातभागहानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक और क्षपक जीव स्वामी है। संयतासंयत जीवोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके समान है। असंयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ! अन्यतर जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके सभान है। इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिये। ८७६. चक्षदर्शनी जीवोंमें त्रसपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। कुछ विशेषता है। पीतलेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुल घुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और बारह कषायके प्रवक्तव्यबन्धका स्वामी ओघके समान है। शेष ज्ञानावरणके समान भङ्ग है। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । अवक्तव्यबन्धका स्वामी ओघके समान है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंमें जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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