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________________ वड्डिबंधे सामित्तं ४१३ पंचगस्स च अवढि० कस्स० १ अण्ण० । सेसाणं अव४ि०-अवत्त० कस्स० १ अण्ण० । एवं अणाहार० । ८७१. इत्थि० पंचणा०-चदुदंसणा०-चदुसंज०-पंचंत० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० १ अण्ण० । णवरि असंखेंजगुणवड्डि-हाणि० अणियट्टि । णिहादंडस्स अवत्त० देवो ति ण भाणिदव्वं । सेसाणं ओघं । पुरिसेसु ओघं । णबुंसगे धुविगाणं इत्थिभंगो । सेसाणं ओघं । अवगदवे० पंचणा०-चदुदंसणा०-पंचंत० संखेंजभागवड्डि-संखेंजगुणवड्डिअवत्त० कस्स० ? अण्णद० उवसम परिवद० । तेसिं हाणि-अवढि० कस्स० ? अण्ण. उवसम० खवग । सादावे०-जस०-उच्चा० संखेंजभागवड्डि-संखेंजगुणवड्डि-असंखेंजगु०अवत्त० कस्स० १ अण्ण० उवसम० परिवद० । तेसिं हाणि-अवट्टि. कस्स० १ अण्ण० उवसम० खवग० । चदुसंज. संखेंजभाग०-अवत्त० कस्स० ? अण्ण० उवसाम० परिवद० । संखेंजभागहाणि-अवढि० कस्स० १ अण्ण० उवसाम० खवग० । ८७२. कोधेसु पंचणा०-चदुदंसणा० चदुसंज०-पंचंत० तिण्णिवडि-हाणि-असंखेंजगुणवड्डि-हाणि-अवट्ठि० ओघं । अवत्त० णत्थि । सेसाणं च ओघं । माणे तिण्णिसंजलणं, कार्मणकाययोगी जीवोंमें ध्रुववन्धवाली और देवगतिपञ्चकके अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । शेष प्रकृतियोंके अवस्थित और अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। ८७१. स्त्रीवेदी जीवोमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका स्वामी अनिवृत्तिकरण जीव है। निद्रादण्डकके अवक्तव्य बन्धका स्वामी देव है,ऐसा नहीं कहना चाहिए । शेष प्रकृतियोंका भंग ओघके समान है । पुरुषवेदी जीवोंमें ओघके समान भंग है । नपुंसकवेदी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भंग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । शेष प्रकृतियोंका भंग ओघके समान है। अपगतवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायकी संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, और अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर गिरनेवाला उपशामक जीव स्वामी है। उनकी हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक और क्षपक जीव स्वामी है। सातावेदनीय, यश कीर्ति और उच्चगोत्रकी संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर गिरनेवाला उपशामक जीव स्वामी है। उनकी हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक और क्षपक जीव स्वामी है । चार संज्वलनोंकी संख्यातभागवृद्धि और अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है? अन्यतर गिरनेवाला उपशामक जीव स्वामी है । संख्यातभागहानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक और क्षपक जीव स्वामी है। ८७२. क्रोधकपायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवस्थित बन्धका भैग आवके समान है। यहाँ अवक्तव्य बन्ध नहीं है। शेष प्रकृतियोंका भंग ओघके समान है। मानमें तीन संज्वलन और मायामें दो संज्वलनोंके तीन पद कहने चाहिय । शेष भङ्ग आपके समान For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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