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________________ ४०६ धे सामित्तं बारसक० - पुरिस०- भय ० दु० - दोगदि पंचिंदि ० - चदुसरीर - समचदु ० - दोअंगो० - वजरिस ०. वण्ण ०४ - दो आणु ० - अगु०४ - पसत्थवि ० -तस० ४ - सुभग सुस्सर - आदें ० - णिमि० - पंचंत ० अस्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्टि० | सेसाणं अत्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवडि० - अवत्त० । 0 ८६५. असण्णी धुविगाणं अत्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० । सेसाणं अत्थि तिण्णवड्ढि - हाणि अवट्ठि ० ० - अवत्त० । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं समुक्कित्तणा समत्ता । सामित्तं ८६६, सामित्ताणुगमेण दुवि० - ओघे० आदे० | ओघे० पंचणा० - चदुदंस ०. चदुसंज० - पंचंत० असंखेखभाग- वड्ढि - हाणि - अवट्टि० कस्स ० १ अण्णद० एइंदियस्स वा बीइंदियस्स वा तीइंदि० चदुरिंदि० पंचिंदि० सण्णि० असण्णि० बादर० सुहुम० पत्ता अपजत्त० । संर्खेजभागवड्डि- हाणिबंधो कस्स० ? अण्ण० बेइंदि० तीइंदि० चदुरिंदि० पंचिदि० सण्णि० असण्णि ० पञ्जत्त • अपज्ज० | संखेजगुणवड्डि- हाणि० कस्स० १ अण्ण० पंचिंदि० सण्णि० असण्णि० पञ्जत० अपञ्जत्त० । असंर्खेज गुणवड्डिबंधी कस्स● अणियट्टिबादर • उवसमणादो परिवमाणस्स मणुसस्स वा मणुसिएणी वा पढमसमय देवस्स वा । असंखेजगुणहाणिबंधो कस्स० १ अण्ण उवसामगस्स वा खवगस्स वा अण्ण० स्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, दो गति, पञ्चेन्द्रिय जाति, चार शरीर, समचतुरस्र संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और वक्तव्य पदके बन्धक जीव हैं ! ८६५. असंज्ञी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव हैं । अनाहारक जीवों में कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग I I इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त दुई । स्वामित्व ८६६. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघ से पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्या भागहानि और अवस्थित पदका स्वामी कौन है ? अन्यतर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पच ेन्द्रिय, संज्ञी, असंज्ञी, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त या पर्याप्त जीव स्वामी है । संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त या अपर्याप्त जीव स्वामी है । संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर पचेन्द्रिय संज्ञी असंज्ञी पर्याप्त या अपर्याप्त जीव स्वामी है । श्रसंख्यात गुणवृद्धिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला अनिवृत्तिबादरसाम्परायिक मनुष्य या मनुष्यनी अथवा प्रथम समयवर्ती देव स्वामी है । असंख्यातगुणहानिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक या क्षपक अनिवृत्तिवादरसाम्परायिक जीव स्वामी है । अवक्तव्य ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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