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________________ महाबँधे द्विदिबंधाहिया रे ८६२. सामाइ ० - वेदो० पंचणा० - चदुदंस०-- लोभसंज० - उच्चा० - पंचंत० अत्थि चत्तारिखड्डि- हाणि - अवट्ठि ० । सेसाणं ओघं । परिहार० - संजदासंजदा० आहारकायजोगिभंगो | सुहुमसंप० पंचणा० - चदुदंस० - सादावे ० - जस ० - उच्चा० - पंचंत० अत्थि संखेंभागवड्डि- हाणि अव०ि । असंजदे पंचणा० छदंसणा ० - बारसक० - भय ० - दु० - तेजा ० क० - वण्ण ०४ - अगु० - उप० - णिमि० पंचंत० अत्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्टि० । सेसाणं अस्थि तिण्णिवड्डि-हाणि - अवट्ठि ० - अवत्त० । एवं किण्ण-णील-काऊणं । णवरि किण्णणीलाणं तित्थय० अवत्त० णत्थि 01 0 ४०८ ८६३. तेऊए पंचणा० - छदंसणा ० - चदुसंज० - भय - दु० - तेजासरीरादि- पंचतरा ० अस्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० । सेसाणं अत्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० - अवत्त ० । पम्माए पंचणा० - छदंसणा ० - चदुसंज ०. ० - भय० - दु० - पंचिंदियादिपण्णरस - पंचत० अत्थि - तिण्णवड्डि-हाणी०-अवडि० । सेसाणं तिण्णिवड्डि-हाणि अवट्टि० अवत्त ० | सुक्काए ओघं । ८६४. वेदगस ० धुविगाणं अस्थि तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० । सेसाणं अत्थि तिण्णिवड्डि- हाणि अवट्ठि ० - अवत्त० । सासणे धुविगाणं अस्थि तिष्णिवड्डि-हाणि - अवट्ठि० । सेसाणं० तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० - अवत्त० । सम्मामिच्छा० पंचणा० - छदसणा० ८६२. सामायिक और छेदोपस्थापना संयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायकी चार वृद्धि, चार हानि, और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । परिहारविशुद्धि संयत और संयतासंयत जीवों में आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशः कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायकी संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव हैं । असंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव हैं 1 इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नीललेश्यावाले जीवोंके तीर्थङ्कर प्रकृतिका अवक्तव्य पद नहीं है । ८६३. पीतलेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर आदि और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव हैं। पद्मलेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, पचेन्द्रिय जाति आदि पन्द्रह और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं । शुक्लेश्यावाले जीव में ओघके समान भङ्ग है । ८६४. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुववन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अब - क्तव्य पदके बन्धक जीव हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियों की तीन वृद्धि, तीन हानि, अब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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