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________________ महाधे द्विदिर्बंधाहियारे अणियट्टिबादरसांपराइगस्स । अवत्त० कस्स होदि ९ उवसमणादो परिवदमाणस्स माणुस वा मणुसिणीए वा पढमसमयदेवस्स वा । थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ० - अनंताणुबंधि ०४ तिण्णिवड्डि- हाणि-अवट्ठि० णाणावरणभंगो । अवत्त० कस्स० १ अण्ण० संजमादो वा संजमा संजमादो वा सम्मत्तादो वा सम्मामिच्छादो वा परिवदमाणगस्स पढमसमयमिच्छादिस्सि वा सासणसम्मादिट्ठिस्स वा । गवरि मिच्छत्तस्स सासणादो वा पढम समयमिच्छादिट्ठिस्स वा । साद० - पुरिस०० - जस० - उच्चा० चत्ताविड्ढि हाणि - अवढि ० णाणावरण भंगो | अवत्त० कस्स० : अण्ण० परियत्त० । णिद्दा पचला-भय ०- -दु०० - तेजा० ४१० -04-01 वण्ण०४- अगु० - उप० णिमि० तिण्णिवड्डि- हाणि अवट्ठि० अवत्त० णाणावरणभंगो | असाद०इत्थि ० ० - बुंस० - चदुणोक० - तिरिक्ख - मणुसग ० - पंचजादि - छस्संठा ० - छस्संघ ० - दोश्राणु०दोविहा० -तस थावरादिणवयुगल अजस०-णीचा० तिण्णिवड्डि- हाणि-अवडि० णाणावरणमंगो | अवत० सादभंगो | अपच्चक्खाणा०४ - तिण्णिवड्डि-हाणि अवट्ठि ० णाणावरणभंगो । अवत्त० संजमादो वा संजमासंजमादो वा परिवदमा० पढमस० मिच्छादि० सासण० सम्मामिच्छादिट्ठिस्स वा असंजद० वा । पच्चक्खाणा०४ - तिण्णिवड्डि- हाणि अवट्ठि० णाणावरणभंगो । अवत्त० संजमादो परिवदमा० पढम० मिच्छा० सासण० सम्मामि० असंज• संजदासंजदस्स वा । चदुआयु० अवत्त कस्स० १ अण्ण० पढमसमय- आयुग० बंधमा बन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला मनुष्य या मनुष्यिती अथवा प्रथम समयवर्ती देव स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, और अनन्तानुबन्धी चारकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर संयम से संयमासंयम से, सम्यक्त्वसे या सम्यग्मिथ्यात्व से गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है । इतनी विशेषता है कि मिध्यात्व प्रकृतिकी अपेक्षा अवक्तव्य बन्धका स्वामी संयमादि चार स्थानोंसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीव तो है ही । साथ ही सासादनसम्यक्त्व से गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टि भी है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, यशः कीर्ति और उच्चगोत्रकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर परिवर्तमान जीव स्वामी है । निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य बन्धका स्वामी ज्ञानावरणके समान है । असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार नोकषाय, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, पाँच जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, त्रस और स्थावर आदि नौ युगल, अयशः कीर्ति और नीचगोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यबन्धका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अप्रत्याख्यानावरण चारकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्य बन्धका स्वामी संयम या संयमासंयमसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि या असंयत सम्यग्दृष्टि जीव है । प्रत्याख्यानावरण चारकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी ज्ञानावरणके समान है । वक्तव्य बन्धका स्वामी संयमसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि या संयतासंयत जीव है। चार आयुओंके अवक्तव्यबन्धका For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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