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________________ भुजगारबंधे अप्पाबहुआणुगमो ३८५ पंचिंदियभंगो। असण्णीसु वेउव्वियछ०-ओरालि० तिरिक्खोघं । सेसाणं ओषं । अणाहार० कम्मइगमंगो । एवं अंतरं समत्तं । भावाणगमो ८०७. भावाणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओषे० पंचणा० चत्तारिपदा बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो। एवं सव्वपगदीणं सव्वत्थ णेदव्वं याव अणाहारग त्ति । एवं भावं समत्तं अप्पाबहुआणुगमो ८०८. अप्पाबहुगं दुवि०-ओषे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंसणा-मिच्छ०सोलसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत. सव्वत्थोवा अवत्तव्वबंधगा। अप्पद० अणंतगु० । भुजागारबंध० विसे० । अवडि. असंखे । दोवेदणी०-सत्तणोक०-दोगदि-पंचिंदि०-छस्संठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०. दोआणु०-पर०-उस्सा०-उज्जो०-दोविहा ०-तस-बादर-पज्जत्तापज्जत्त-पत्ते०-थिरादिछयुग०-दोगोद० सव्वत्थोवा अवत्त । अप्पद० संखेजः। भुज. विसे० । अवढि० असंखेज्ज । चदुआयु० सव्वत्थोवा अवत्त० । अप्पद० असंखें । वेउव्वियछ० सव्वचार पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। संज्ञियोंमें पञ्चन्द्रियोंके समान भङ्ग है। असंज्ञियोंमें वैक्रियिक छह और औदारिक शरीरका भङ्ग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । अनाहारकोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुआ। भावानुगम ८०७. भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । भोघसे पाँच ज्ञानावरणके चार पदोंके बन्धक जीवोंका कौनसा भाव है ? औदयिक भाव है। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंका सर्वत्र अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । इसप्रकार भावानुगम समाप्त हुआ। __ अल्पबहुत्वानुगम ८०८. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, भय, जगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। दो वेदनीय, सात नोकषाय, दो गति, पञ्चेन्द्रियजाति, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, उद्योत, दो विहायोगति, बस, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर आदि छह युगल और दो गोत्रके प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यात गुणे हैं । इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। चार आयुओंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अल्पतर Jain Education InternatiPE For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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