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________________ ८६ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे त्योमा अवतः । भुज०-अप्पद० दो वि सस्सिा संखेज्ज० । अवष्टि० असंखें । तिष्णिजादी देवगदिभंगो। एइंदि०-आदाव-थावर-सुहुम-साधार० सव्वत्थो० अवत्त । भुज० संखेज्ज० । अप्पद० विसे० । अवहि. असंखज्ज० । [ आहार०] आहार०अंगो० सम्वत्थो० अवत्त । दोपदा० संखज्ज० । अवहि० संखज्ज । तित्थय० सव्वत्थो० अवत्त । दोपदा असंखेन । अवढि० असंखज्ज। ८०६. णिरए धुविगाणं सव्वत्थोवा भुज-अप्पद० । अवढि० असंखे । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अर्णताणुबंधि०४-तित्थय० सव्वत्थोवा अवत्त । भुज०-अप्पद. असंखज्ज । अवडि० असंखे । सेसाणं सव्वत्योवा अवत्त । भुज-अप्पद० संखेज। अवडि० असंखेज्जः । तिरिक्खायु० ओघं । मणुसायु० सव्वत्थो० अवत्त । अप्पद० संखेज्जः। एवं सत्तसु पुढवीसु। णवरि सत्तमाए दोगदी-दोआणु०-दोगोद. थीणगिद्धिभंगो। ८१०. तिरिक्खेसु धुविगाणं सव्वत्थो० अप्पद० । भुज० विसे० । अवढि० असं. खेज्जः । सेसाणं ओघं। पंचिंदियतिरिक्खेसु धुविगाणं पिरयभंगो । थीणगिद्धि०३पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक छहके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव दोनों ही समान होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तीन जातियोंका भङ्ग देवगतिके समान है। एकेन्द्रिय जाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण प्रकृतिके श्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारकशरीर और आहारक आङ्गोपाङ्गके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे दो पदोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तीर्थङ्कर प्रकृति के प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे दो पदोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। ८०६. नारकियोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार और तीर्थंकर प्रकृतिके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तिर्यञ्चायुका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यायुके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें दो गति, दो नुपूर्वी और दो गोत्रका भङ्ग स्त्यानगृद्धिके समान है। ८१०. तिर्यश्चोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंके अल्पतर पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । पञ्चन्द्रिय तिर्यश्चोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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