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________________ ३८४ महाबंधे हिदिबंधाहियारे णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०, उक्क० मासपुध० । ओरोलिय. अवत्त० जह० एग०, उक्क. अडदालीसं मुहु० । मिच्छ० अवत्त० जह० एग०, उक्क. सत्त रादिदियाणि । सेसाणं मणुसोघो। विसेसो णादव्वो। पम्माए देवगदि०४ तेउभंगो । ओरालि०-ओरालि अंगो. अवत्त० जह. एग०, उक्क० दिवसपुध० । सेसाणं च तेउभंगो। सुक्काए मणुसगदि-देवगदि-दोसरीर-दोअंगो०-दोआणु० ओधिभंगो। सेसाणं मणुसि०भंगो। ८०५. खइगे धुविगाणं मणुसगदि-देवगदिन्दोसरीर-दोअंगो०-वज्जरिस०-दो आणु० अवत्त० जह० एग०, उक्क वासपुध० । सेसाणं ओधिभंगो। उवसम० पंचणाणावरणा० तिण्णि पदा जह० एग०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । एवं सव्वाणं । णवरि आहार-आहार अंगो०-तित्थय० भुज०-अप्पद०-अवढि०-अवत्त० जह० एग०, उक्क० वासपुध० । सेसाणं अवत्त० ओघं । ८०६. सासणे धुविगाणं तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें। सेसाणं चत्तारि प० ज० एग०, उक्क पलिदो० असंखे । एवं सम्मामि० । सण्णि जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मासपृथक्त्व है। औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अड़तालीस मुहूर्त है। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य मनुष्यों के समान है। यहाँ पर जो विशेष हो वह जानना चाहिये । पद्मलेश्यावाले जीवोंमें देवगति चतुष्कका भङ्ग पीत लेश्याके समान है। औदारिक शरीर और औदारिक आङ्गोपाङ्गके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दिवस पृथक्त्व है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पीतलेश्याके समान है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मनुष्यगति, देवगति, दो शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग और दो अानुपूर्वी का भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है।। ०५. क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों, मनुष्यगति, देवगति, दो शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, वनऋषभनाराचसंहनन और दो आनुपूर्वीके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंका जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि आहारक शरीर, आहारक आङ्गोपाङ्ग और तीर्थङ्कर प्रकृतिके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल ओघके समान है। ८०६. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। शेप प्रकृतियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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