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________________ भुजगारबंधे अंतरानुगमो ३८३ उक्क० पलिदो० असंखे । आहार० - आहारमि० सव्वाणं सव्वे भंगा जह० एग०, उक्क • वासपुध० । ८०१. अवगदे० सच्वकम्मा० अप्पद ० - श्रवट्टि० जह० एग०, णत्थि अंतरं । ८०२. आभि० - सुद० - ओधिणाणी० धुविगाणं तित्थय० मणुसभंगो । दोगदिदोसरीर - दो अंगो०- वञ्ज रिस० [ दो आणु० ] दोणि पदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० एग०, उक० मासपुध ० । सेसाणं तिष्णि प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । सव्वाणं अवट्टि० णत्थि अंतरं । एवं ओधिदंस० - सम्मादि० - वेदगसम्मा० । मणपज० धुविगाणं मणुसि० भंगो । सेसाणं ओधिभंगो । एवं संजदा संजदासजदा । ८०३. सामाइ० - छेदो० धुविगाणं विसेसो णादव्वो । परिहारे धुविगाणं भुज०अप्प० ज० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि० णत्थि अंतरं । सेसाणं पि एस भंगो० । णवरि अवत्त० विसेसो । ८०४. ते देवगदि०४ भुज० - अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवडि० भुज० - अवत्त० जह० एग०, उक्क० वासपुध० । उक्क० छम्मासं० ० । एवं सुहुमसंप० । णवरि अवत्तव्वं भाग प्रमाण हैं । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में सब प्रकृतियों के सब पदोंके बन्धक जीवोंका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षथक्त्व है । ८०१. अपगतवेदी जीवोंमें सब कर्मों के भुजगार और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है । अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । इसीप्रकार सूक्ष्म साम्परायिक संयत जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । ८०२. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियाँ और तीर्थंकर प्रकृति के बन्धक जीवोंका भङ्ग मनुष्यों के समान है । दो गति, दो शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, चज्रऋषभनाराचसंह्नन और दो आनुपूर्वीके दो पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मास पृथक्त्व है । शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सब प्रकृतियोंके अवस्थित पदका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । मन:पर्ययज्ञानी जीवों में ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। इसी प्रकार संगत और संयतासंयत जीवों के जानना चाहिये । ८०३. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका विशेष जानना चाहिये । परिहारविशुद्धि संगत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । शेष प्रकृतियों के बन्धक जीवोंका भी यही भङ्ग है । किन्तु वक्तव्य पदमें कुछ विशेषता है । ८०४. पीतलेश्यावाले जीवोंमें देवगति चतुष्क के भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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