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________________ ३२२ महावं ट्ठिदिबंधाहियारे तिणि पदा ज० ए०, उ. पलिदो० असंखें । सेसाणं चत्तारि प० ज० ए०, उ० पलिदो० असंखे। ७६६. मणुस०३ धुविगाणं दो पदा ज० ए०, उ० अंतो० । अवढि णत्थि अंतरं । अवत्त० ओघं । सेसाणं तिणि प० ज० ए०, उ० अंतो० । अवढि० णत्थि अंतरं । [ आउगाणं पगदिअंतरं । ] एवं पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-इत्थि०पुरिस०-चक्खुदं० । देवेसु विभंगे णिरयभंगो। कायजोगि-ओरालिय०-णस०कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि०-अब्भवसि०मिच्छादि०-आहार० ओघं । णवरि धुविगाणं विसेसो णादव्यो। ८००. ओरालियमिस्से देवगदि०४ तिणि प० ज० ए०, उ० मासपुध० । तित्थय० तिण्णिप० ज० ए०, उ० वासपुध० । मिच्छ० अवत्त० ज० ए०, उ० पलिदो० असंखे। सेसाणं सवपदा णत्थि अंतरं । एवं कम्मइ० । वेउब्वियका णिरयभंगो। वेउन्वियमि० तित्थय० तिण्णिपदा जह० एग०, उक्क. वासपुध० । सेसाणं सवपदा जह• एग०, उक्क० बारस मुहु० । एइंदियतिगस्स चदुवीस मुहु। मिच्छ० अवत्त० जह० एग०, शेष प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। ७६६. मनुष्यत्रिकमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। आयुओंका भङ्ग प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। इसी प्रकार पश्चेन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और चक्षुःदर्शनी जीवोंके जानना चाहिये । देवोंमें और विभङ्गज्ञानी जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुःदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और आहारकोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका विशेष जानना चाहिये। ८००. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें देवगति चतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मास पृथक्त्व है। तीर्थंकर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उस्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । इसीप्रकार कार्मणकाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें तीर्थंकर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। एकेन्द्रियत्रिकका चौबीस मुहूर्त है। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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