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________________ जगबंधे कालागमो ३७६ सादादीणं परियत्तमाणियाणं उजो० चत्तारिप० अट्ठ-बारह० । दोआयु० - मणुसग ०मणुसाणु०-उच्चा० चत्तारिपदा अडचोहस० । [ देवायु० खतभंगो ] देवगदि ० ४ तिष्णिपदा पंचचद्दस० । अवत्त० खेत० । ओरालि० तिष्णिपदा अट्ठ-बारह० । अवत्त० पंचच६ ० । ७६४. सम्मामि० धुविगाणं तिष्णिपदा अट्ठचों० । सादादीणं चत्तारिपदा अडचों० । [ णवरि देवगदि४ लोग असंखे० । ] असण्णीसु णिरय देवायु० - वेउब्विय ० [ छ ] ओरालि • खेत्तभंगो । सेसाणं एइंदियभंगो । एवं फोसणं समत्तं । 1 कालागमो ७६५. कालानुगमेण दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० भुज० अप्पद ० - अवत्त० एसिं परिमाणे अनंता असंखेजा लोगरासीणं तेसिं सव्वद्धा । असंखेजरासिं जहणणेण एयस०, उक्क० आवलियाए असंखेज० । जेसिं संखजजीवा तेसिं जह० एग०, उक्क० संखेन समय० । अवट्टि ० सव्वेसिं सव्वद्धा० । णवरि जेसिं भयणिञ्जरासिं तेसिं अवदि चौदह राजू और कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । साता आदि परिवर्तमान प्रकृतियाँ और उद्योत प्रकृतिके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके चार पदके बन्धक जीवोंने कुल कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवायुके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । देवगति चतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवांने कुछकम पाँच बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । औदारिकशरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ७६४. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । साता आदि प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि देवगति चतुष्कके चार पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अज्ञी जीवों में नरका, देवायु, वैक्रियिक छह और औदारिक शरीरके सब पदके बन्धक जीवांका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन एकेन्द्रिय जीवोंके समान है। इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ । कालानुगम ७६५. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे जिन मार्गणाओं में भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका परिमाण अनन्त और असंख्यात लोक प्रमाण है, उनका काल सर्वदा है। जिनका परिमाण असंख्यात है, उनका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। जिनका परिमाण संख्यात है, उनका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल संख्यात समय है । अवस्थितपदवाले सब जीवोंका काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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