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________________ ३७८ महाबंधे हिदिबंधाहियारे णीचा०तिण्णिप० अङ्क-णवचौ। अवत्त० अट्टचों । सादादिवारह-मिच्छत्त-उज्जो० चत्तारि पदा अट्ठ-णवचों । अपचक्खाणा०४-ओरालि० तिण्णि प० अट्ठ-णवचोद० । अवत्त० दिवड्डचो । इत्थिवे० चत्तारि पदा अट्ठचौद्द० । एवं पुरिस० । मणुसगदिपंचिंदि०-पंचसंठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०-आदाव-दोविहा०-[तस०] सुभग-दोसर आदें०-उच्चा०-देवगदि०४ तिग्णि पदा दिवड्चोंद ० । अवत्त० खत्त । णवरि मणुसदुग०-वज्जरिस०-ओरालि अंगो० दिवड्डचों । पचक्खाणा०४-आहारदुगतित्थय० ओघं । पम्माए तेउभंगो । णवरि याणि पदाणि दिवढं तेसिं पंचचों । सेसाणं अट्ठचों । एवं सुक्काए वि । णवरि छच्चो० । __७६३. सासणे धुगिगाणं तिण्णि पदा अट्ठ-बारह । इथि०-पुरिस-पंचसंठा-पंचसंघ०-दोविहा०-सुभग-दोसर-आदें. तिण्णि पदा अट्ट-एकारह० । अवत्त० अट्ठचों । तिरिक्खगदिदुग दूभग अणादेंणीचागो० तिण्णिपदा अट्ठ-बारह । अवत्त० अट्ठचो । चौदह राजू और कुछ कम नौ वटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। साता आदि बारह प्रकृतियाँ, मिथ्यात्व और उद्योतके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अप्रत्याख्यानावरण चार और औदारिक शरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राज और कुछ कम नौ घटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पुरुषवेदके चार पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन जानना चाहिए। मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आंगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगल्यानुपूर्वी, आतप, दो विहा. योगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय, उच्चगोत्र और देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगतिद्विक, वज्रर्षभनाराचसंहनन और औदारिक आंगोपांगके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदहराज क्षेत्रका स्पर्शन । प्रत्याख्यानावरण चार. आहारकद्रिक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। पद्मलेश्यावाले जीवोंमें पीतलेश्यावाले जीवोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि जिन पदोंका कुछ कम डेढ़बटे चौदह राजू स्पर्शन कहा है,उनका कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्र प्रमाण स्पर्शन कहना चाहिए। शेष पदोका कुछ कम आटबटे चौदह राजू क्षेत्र प्रमाण स्पर्शन कहना चाहिए। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवों में भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँपर कुछ कम छहबटे चौदहराजू क्षेत्र प्रमाण स्पर्शन कहना चाहिए। ७६३. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारहबटे चौदहराजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर और आदेयके तीन पदोंके वन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तिर्यञ्चगतिद्विक, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबेटे ter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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