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________________ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो अवत्त० खेत० । मणपजवादि याव सुहुमसंपराइगा ति खेत्तभंगो। ७९०. संजदासंजदा० देवायु-तित्थय० खेतः । धुविगाणं तिण्णि पदा वि सेसाणं चत्तारि पदा छच्चों । असंजदे ओघं । ओधिदं०-सम्मादि०-खइग०-वेदग०-उवसम० आभिणिभंगो। णवारे खइगे उवसम० देवगदि०४ चत्तारिपदा मणुसगदिपंचग० अवत्त० खेत। ___७६१. किण्ण०-णील०-काउसु धुविगाणं तिण्णि पदा सव्वलो० । थीणगिद्धि०३मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४ तिण्णि पदा सव्वलो० । अवत्त० खेत्त० । णवरि मिच्छ. अवत्त० पंच-चत्तारि-बेचौद्द० । णिरय-देवायु-देवगदिदुगं खेत० । णिरयगदि-वेउवि०वेउवि अंगो०-णिरयाणु० तिण्णिपदा छ-चत्तारि-बेचो० । अवत्त० खेत। सेसाणं चत्तारि पदा सव्वलो० । तित्थय० चत्तारिपदा खेत।। ___७६२. तेऊए धुविगाणं तिण्णि पदा अट्ठ-णवचौद्द० । थीणगिद्धि०३-अणंताणुबंधि०४-णस०-तिरिक्खग०-एइंदि०-हुंड०-तिरिक्खाणु०-थावर-दूभग-अणादेंबन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्श न क्षेत्रके समान है। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवों तक स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ७६०. संयतासंयत जीवोंमें देवायु और तीर्थंकर प्रकृतिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने और शेष प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंयत जीवोंमें स्पर्शन ओघके समान है। अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंमें आभिनिबोधिकज्ञानी जीवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें देवगति चतुष्कके चार पदोंके और मनुष्यगति पंचकके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ७६१. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें ध्रुववना बाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवों ने क्रमसे कुछ कम पाँचपटे चौदह राजू, कुछ कम चारबटे चौदह राजू और कुछ कम दोबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु और देवगतिद्विकके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। नरकगति, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अांगोपांग और नरकगत्यानुपूर्वीके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने क्रमसे कुछ कम छहबटे चौदह राजू, कुछ कम चारबटे चौदह राजू और कुछ कम दोबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदका भङ्ग क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके चार पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ७६२. पीतलेश्यावाले जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम नौ वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चार, नपुसकवेद, तिथंचगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आटवटे ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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