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________________ ३७६ महाबंधे हिदिबंधाहियारे अवत्त० खेत । णवरि मिच्छत्त० अवत्त० बारहचो० । ओरालिय० अवत्तव्वं छचोंद० । दोआयु०-वेउव्वियछक्कं [ आहारदुग] तित्थय० ओरालियकायजोगिभंगो। सेसाणं चत्तारि पदा सव्वलो। ७८८. कोधादि०४-मदि० सुद० ओघं । णवरि मदि०-सुद० देवगदि-देवाणुपु० तिण्णिप० पंचचों । अवत्त० खेत्तभंगो। वेउवि०-वेउवि अंगोतिण्णि पदा ओरालि. [अवत्त०] ऍकारह० । [ वेउवि०दुग० ] अवत्त० खेतभंगो। ७८६. आभि०-सुद०-ओधि० पंचणा०-छदंसणा०-अट्ठक-पुरिस०-भय-दुगुं०मणुसगदिपंचग०-पंचिंदि०-तेजा०-क०-समचदु०-वण्ण०४ अगु०४-पसत्थ०-तस०४. सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि०-तित्थय०-उच्चा०-पंचंत. तिण्णि पदा अट्टचो० । अवत्त० खेत्तभंगो। णवरि मणुसगदिपंचग० अवत्त छच्चो० । सादादीणं चारस० चत्तारि पदा अट्ठ० । मणुसायु० दो पदा अट्टचोद्द० । देवायु-आहारदुगं खेत्तभंगो। अपञ्चक्खाणा०४ तिण्णि पदा अट्ठों । अवत्त० छच्चोंद० । देवगदि०४ तिण्णि पदा छचों। जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पशेन किया है। औदारिक शरीरके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आय, वैक्रियिक छह, आहारक दो और तीर्थकर प्रकृतिके सब पदोंका भंग औदारिककाययोगी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ७८. क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, और ताज्ञानी जीवोंका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें देवगति और देवगत्यानुपूर्वी के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचबटे चौदहराजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकांगोपांगके तीन पदोंके तथा औदारिकशरीरके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकद्विकके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन तंत्रके समान है। ७६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छहदर्शनावरण, आठ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति पंचक, पंचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदहराजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका पनि क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति पंचकके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । साता आदि बारह प्रकृतियों के चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुके दो पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायु और आहारकद्विकके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षत्रके समान है । अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंक बन्धक जीवोंने कुछ कम पाठबटे चौदह राजू सत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षत्रका स्पर्शन किया है। देवगति चारके तीन पदों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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