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________________ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो ३७५ [णवरि ओरालि० अवत्त० दिवड्डचोद० । इथि०-पुरिसवे०-पंचसंठा-ओरालि० अंगो०छस्संघ०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें. चत्तारिपदा अट्टचों । दो आयु० तिण्णिजादिआहारदुग-तित्थय खेत० । दोआयुगस्स दोपदा मणुसग०-मणुसाणु०-आदाव-उच्चा० चत्तारिप० अट्ठचों । एइंदि०-थावर० तिण्णिप० अट्ठचों सबलो० । अवत्त० अट्ठचों । उज्जो०-जसगि० चत्तारिप० अट्ठ-णवचो । बादर तिण्णिप० अट्ठ-तेरहचोद्द० । अवत्त. खेत्त । सुहुम-अपज्ज०-साधार० तिण्णिप० लो० असंखें सव्वलो० । अवत्त० खेत्तभंगो। बेउब्विय० ओघं । अजस० तिण्णिप० अट्ठचोद० सव्वलो० । अवत्त० अट्ठ-णवचोद्द० । एवं पुरिस० वि । [ णवरि ] अपञ्चक्खाणा०४-ओरालि० अवत्त० छचोद० । तित्थय० ओघं। ७८७. णवंसगे अट्ठारसण्णं तिण्णि पदा सव्वलोगो। पंचदंस० मिच्छत्तबारसक०भय-दुगुं०-ओरालि-तेजा० क०-वण्ण०४-अगु०-उप०.[णिमि० ] तिण्णिप० सव्वलो० । स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि औदारिकके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, प्रशस्तविहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेयके चारपदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, तीन जाति, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो आयुओंके दो पदोंके और मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत और यशःकीतिके चार पदोक बन्धक जीवान कुछ कम आठबटे चादह राजू आर कुछ कम नबिटे चादह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यात भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । वैक्रियिक शरीरके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है। अयशःकीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजु और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदक बन्धक जीवान कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम नौबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके भी जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरण चार और औदारिकशरीरके अवक्तव्य पदके वन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थकर प्रकृतिके सब पदोंके वन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ___ ७८७. नपुंसकवेदी जीवोंमें अठारह प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके तीन पदोंके बन्धक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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