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________________ ३८० महाबंधे द्विदिबंधाहियारे कालो अप्पप्पणो पगदिकालो कादव्यो । णवरि जह० एग० । तिण्णिआयुगाणं अवत्तव्वगा जह० एग०, उक्क० आवलि. असंखे । अप्पद० ज० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखें । तिरिक्खायु० दोपदा सव्वद्धा । एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । एवं कालं समत्तं । अंतराणुगमो ७९६. अंतराणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०सोलसक०-भय-दुगुं०-ओरालि०-तेजा०-क०-वण्ण०४- अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत. भुज०-अप्पद०-अवढि० णत्थि अंतरं। अवत्त० ज० एग०, उक्कस्सेण थीणगिद्धि०३. मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४ सत्त रादिदियाणि । अपञ्चक्खाणा०४ चौदस रादिदियाणि । पञ्चक्खाणा०४ पण्णारस रादिदियाणि । ओरालि० अंतो० । सेसाणं वासपुधत्तं०, । वेउनियछ०-आहारदुगं भुजा-अप्पद०-अवत्त० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवढि० णत्थि अंतरं । तिण्णि आयुगाणं अवत्त०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० चदुवीस मुहु० । तिरिक्खायुगस्स दोपदा० णत्थि अंतरं । तित्थय० दो पदा जह० एग०, उक्क० अंतो०। सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि जिन मार्गणाओंकी राशि भजनीय है, उनके अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका काल अपने-अपने प्रकृतिबन्धके कालके समान कहना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जघन्यकाल एक समय है । तीन आयुओंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवीका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । तियेच आयुके दो पदोंके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। इस प्रकार काल समाप्त हुआ। अन्तरानुगम ७६६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण; नै दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका सात दिनरात है। अप्रत्याख्यानवरण चारका चौदह दिनरात है । प्रत्याख्यानावरण चारका पन्द्रह दिनरात है, औदारिकशरीरका अन्तर्मुहूर्त है और शेष प्रकृतियोंका वर्षपृथक्त्व है। वैक्रियिकछह, आहारकद्विकके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। तीन आयु. ओंके अवक्तव्य और अल्पतरपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है । तिर्यंच आयुके दो पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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