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________________ भुजगारबंधे अंतराणुरामो રૂપણ पत्थि अंतरं । एवं पम्माए वि । णवरि ओरालि०-आहारदुग-'ओरालि अंगो०-अट्ठक०तित्थय० दोपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवढि० जह० एग०, उक० बेसम० । अवत्त० णत्थि अंतरं । देवगदि०४ तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अट्ठारस साग० सादि० । अवत्त० णत्थि अंतरं० । ७५८. सुक्काए पंचणा०-छदसणा०-चदुसंज०-भय-दुगुं०-पंचिंदि०-तेजा-कवण्ण० ४-अगु०४-णिमि०-तित्थय०-पंचंत० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त णत्थि अंतरंथीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४-इत्थि-णवंसगवेदादि० णवगेवज. भंगो। दोवेदणीय चदुणोक०-आहारदुग-थिरादितिण्णियुगलं तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० उक्क० अंतो० । अट्ठक०-मणुसगदिपंचगं दोपदा जह० एग०, उक्क० अंतो०। अवट्टि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त० णस्थि अंतरं । पुरिस०-समचदु०-वज्जरिस०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर आदें०-उच्चा० तिण्णिपदा सादभंगो । अवत्तव्वं देवभंगो । देवगदि०४ तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि। अवत्तव्व० जह० अट्ठारस साग० सादि०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० । भवसिद्धि० ओघं । अब्भवसि० मिच्छादि० मदि० भंगो । __ ७५६. खइगे आधिभंगो । णवरि तेत्तीसं साग० सादि० । आयुग० पगदि अंतरं । विशेषता है कि औदारिक शरीर, आहारकद्विक, औदारिक अाङ्गोपाङ्ग, आठ कषाय और तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। देवगति चतुष्कके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। ७५८. शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तै स शरीर, कार्मण शरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, निर्माण, तीर्थंकर और पाँच अन्तरायके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद आदिका भङ्ग नौवेयकके समान है। दो वेदनीय, चार नोकषाय, आहारकद्विक और स्थिर आदि तीन युगलके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आठ कषाय और मनुष्यगतिपञ्चकके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, वर्षभनाराच संहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। अवक्तव्य पदका भङ्ग देवोंके समान है। देवगति चतुष्कके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तैतीस सागर है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अठारह सागर है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । भव्यजीवोंकाभङ्ग ओघके समान है। अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंका भङ्ग मत्यज्ञानियोंके समान है। ७५६. क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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