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________________ महाधे द्विदधाहियारे मणुसगदिपंचग० दोण्णिप० जह० एग० उक्क० अंतो० । अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त० णत्थि अंतरं । देवगदि ० ४ - आहारदुगं तिष्णिपदा जह० एग०, अवत्त ० जह० अंतो०, उक्क० तैंतीसं साग० सादि० । तित्थय • ओघं । ३६० ७६०. वेदगे धुविगाणं तिष्णिपदा परिहार०भंगो । अट्ठक० मणुसगदिपंचग० ओधिभंगो | देवगदिचदुक्क० तिष्णिप० अधिभंगो । अवत्त ० जह० पलिदो ० सादि०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० | दोआयु ० - आहारदुगं ओधिभंगो । तित्थय ० दोपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त० णत्थि अंतरं । ७६१. उवसम० पंचणा० छदंसणा० बारसक० - पुरिस०-भय-दु० देवगदि ०४ - पंचिंदि० - तेजा० क० - वण्ण०४ - अगु०४ - पसत्थ० - तस ०४ - सुभग - सुस्सर - आदेंज ० - णिमि ०. तित्थय ०[० उच्चा० - पंचंत० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० णत्थि अंतरं० । मणुगदिपंचग० दोपदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवडि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त ० णत्थि अंतरं । सादादिबारस ओघं । एवं आहारदुगं । 1 ७६२. सासणे - धुविगाणं णिरयोघं । तिण्णिआयु० दोपदा० णत्थि अंतरं । सेसाणं कि यहाँ साधिक तेतीस सागर कहना चाहिए। आयुकर्मका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तर के समान है | मनुष्यगतिपञ्चकके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । देवगतिचतुष्क और आहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओके समान है । ७६०. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका भङ्ग परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके समान है। आठ कषाय और मनुष्यगतिपञ्चकका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । देवगतिचतुष्कके तीन पदोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर साधिक एक पल्य हैं और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। दो आयु और आहारकद्विकका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । ७६१. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगतिचतुष्क, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर; कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । मनुष्यगतिपञ्चकके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । साता आदि बारह प्रकृतियोंका भङ्ग ओके समान है । इसी प्रकार आहारकद्विकका भङ्ग है । ७६२, सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य नारकियोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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