SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परत्थाराडिदिप्पाव हुगपरूवणा ३०७ . I ६६५. मणुस ० ३ सव्वत्थोवा तिरिक्ख'- मणुसायु० ज० हि० । यहि० विसे० । लोभसंज० ज० हि० संखेज्ज० । यहि० विसे० | पंचरणा० - चदुदंसणा ० -- पंचंत ० ज० वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । जस० उच्चा० ज०वि० संखेंज्ज० । यट्टि० विसे० । सादावे० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । मायासंज० ज० वि० संखेज्ज० । यहि ० विसे० | माणसंज० ज० द्वि० विसे० । यहि० विसे० | कोधसंज० ज०ट्ठि० विसे० । यद्वि० वि० । पुरिस० ज० हि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । दोश्रायु० ज० हि० संखेज्ज० । यद्वि० विसे० । हस्स--रदि-भय-दुगु० - मणुसगदि -- तिरिणसरीरं ज० डि० संखेज्ज० १० । यहि० विसे० । अरदि-सोग अजस० ज० हि० विसे० । यहि ० विसे० । इत्थि० ज०वि० विसे० । यहि० विसे० | स० ज० द्वि० विसे० । यद्वि० विसे० । I 1 . णीचा० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । तिरिक्खग० ज० हि० विसे० । यहि ० विसे० | पंचदंस० ज०ट्टि० विसे० । यहि० विसे० । असादा० ज० द्वि० विसे० । afro विसे० । बारसक० ज०वि० विसे० । यहि० विसे० । मिच्छ० ज० द्वि० ० ६६५. मनुष्यत्रिक में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मान संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो आयुओं का जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति और तीन शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे अरति शोक और अयशःकोर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नीच गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँचदर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक | इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है | इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे बारह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । १ मूलप्रतौ तिरिक्खे मग्गुसायु० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy