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________________ परत्थाणट्ठिदिअप्पाबहुगपरूवणा यहि विसे । मिच्छ० ज०हि विसे । यहि विसे० । इत्थि० ज०हि० संखेज्ज० । यहि विसे । णवुस० ज०हि० विसे । यहि विसे। ६६१. तिरिक्खेसु सबथोवा दोश्रायु० जहि । यहि विसे० । णिरयदेवायु० ज०हि० संखेंज्ज०। यहि. विसे०। पंचणोक०--दोगदि-तिरिणसरीरजसगि०-णीचागो०-उच्चा० ज०हि० असंखेंज० । यहि. विसे । अरदि-सोग. अजस० ज०ट्टि. विसे । यहि. विसे । इत्थि० ज०हि० विसे । यहि विसे० । णवुस० ज०हि. विसे । यहि० विसे । पंचणा०-णवदंसणा०-सादा०. पंचंत० ज०हि० विसे०। यहि० विसे० । असादा० ज०ट्ठि. विसे । यहि० विसे । सोलसक० ज०ट्रि० विसे० । यहि विसे । मिच्छ. जढि० विसे । यहि विसे । देवगदि-वेउव्वि. जहि संखेंज । यहि विसे । णिरयग० जहि. विसे । यहि. विसे० । ६६२. पंचिंदिय-तिरिक्ख०३ सव्वत्थोवा तिरिक्ख--मणुसायु० जहि । यदि विसे० । दोश्रायः जहि संखज्ज । यहि विस । पंचणोक -देवगदितिण्णिसरीर--जस०--उच्चा० ज.हि. असंखेंज । यहि. विसे० । अरदि--सोगइससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६६१. तिर्यञ्चों में दो आयुओं का जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकायु और देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकषाय, दो गति, तोन शरीर, यशःकीर्ति, नीचगोत्र और उच्चगोत्र का जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयश-कीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असाता वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगति और वैकियिक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६६२. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च तीनमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जधन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे दो अायुओंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच नोकषाय, देवगति, तीन शरीर, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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