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________________ परत्थाणट्ठिदिअप्पाबहुगपरूवणा ३०३ जहि विसे । यहि विसे । असादा० ज०हि. विसे । यहि विसे । बारसक० जहि० विसे० । यहि विसे०। मिच्छ० ज०ट्टि विसे० । यहि विसे । देवगदिवेउवि० ज०हिसंखेज्जः । यहि. विसे० । णिरयग० ज०हि. विसे । यहि० विसे । आहार० ज०हि० संखेंज्ज० । यहि विसे । ६५६. णिरएसु सव्वत्थोवा दोरणं आयु० जहि । यहि विसे०। पंचणोक०मणुसग --तिएिणसरीर--जसगि०--उच्चा० ज०हि. असंखेज्ज०। यहि विसे० । अरदि-सोग-अजस० ज०हि. विसे । यहि विसे । इस्थि० ज०हि. विसे । यहि विसे । णवुस जहि० विसे । यहि विसे । णीचा० ज०वि० विसे । यहि विसे । तिरिक्खग० ज०हि. विसे० । यहि. विसे । पंचणा-णवदंसणासादावे-पंचंत० ज हि विसे । यहि विसे० । असादा० ज०हि विसे० । यहि विसे० । सोलसक० ज०हि. विसे । यहि. विसे । मिच्छ० जहि. विसे । यहि. विसे । एवं पढमाए। है । इससे पाँच दर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे बारह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध षि अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगति और वैक्रियिक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे आहारक शरीरका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६५९. नारकियोंमें दो आयुओंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच नोकपाय, मनुष्यगति, तीन शरीर, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयश कीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार पहिली पृथिवीमें जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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