SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे यहि विसे०। सोलसक० उ०हि० विसे । यहि विसे । मिच्छ० उ.हि. विसे । यहि विसे । अणाहार० कम्मइगभंगो। एवं उकस्सपरत्थाणहिदिअप्पाबहुगं समत्तं ६५८. जहएणए पगदं । दुवि०--ओघे० आदे० । अोघे० सव्वत्थोवा तिरिक्वमणुसायूणं जहणणो हिदिबंधो। यहि विसे । लोभसंज० ज हि०बं० संखेज्जगु०। यहि विसे० । पंचणा--चदुदंसणा--पंचंत० ज०हि० संखेज्ज० । यहि. विसे० । जस०-उच्चा० जहि० संखेन्ज । यहि विसे । सादा जहि. विसे० । यहि० विसे । मायासंज० ज०हि० संखेज । यहि विसे । माणसंज० ज०हि. विसे । यहि विसे । कोधसंज० ज हि० विसे । यहि विसे । पुरिस० ज हि० संखेज । यहि विसे० । णिरय-देवायु० जाहि० संखेज्जा । यहि० विसे० । हस्स-रदि-भयदुगु-तिरिक्व--मणुसगदि-ओरालि०-तेजा-क०-णीचागो० ज०हि० असंखेज्ज । यहि विसे० । अरदि-सोग-अजस० ज०हि. विसे । यहि. विसे०। इत्थि. जट्टि० विसे० । यहि विसे०। णवूस. ज.हि. विसे । यहि विसे | पंचदंस. इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कपायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। अनाहारक जीवों में कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। _इस प्रकार उत्कृष्ट परस्थान स्थितिअल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६५८. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ग्रोघसे तिर्यञ्चाय और मनुष्यायका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इ यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुरणा है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नरकायु और देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, औदा. रिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर और नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे अरति, शोक और अयशःकीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy