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________________ महाबंधे द्विदिबंधा हियारे ✓ 1 ६५० मदि० - सुंद० सव्वत्थोवा तिरिक्ख मणुसायु० उ०डि० । यहि० विसे० । देवायु० उ०वि० संखेज्ज • । यद्वि० विसे० । गिरयायु० उ०ट्टि० विसे० । यट्टि विसे० | पुरिस० - हस्स-रदि- देवगदि जसगि० उच्चा० उ० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । सादा० - इत्थि० -- मणुस ० उ० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । उवरि ओघं । एस भंगो विभंगे असं० - किरणले ० -- अब्भवसि० - मिच्छा० । एवरि किरणे णिरयायु० संखेज्जगु० । २९८ ६५१. भि० -- सुद० -- अधिणा० सव्वत्थोवा मणुसायु० उ०हि० । यहि० विसे० | देवायु० उ० द्वि० [ अ ] संखेज्ज० । यहि० विसे० । आहार० उ०हि० संखेज्ज० । यहि विसे० । हस्स-रदि- जसगि० उ०वि० संखैज्ज० । यहि० विसे० । सादावे० उ० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । पंचपोक० - दोगदि-चदुसरीर - अजस०उच्चा० उ०हि० संखेज्जगु० । यद्वि० विसे० | पंचणा० छदंसणा ० श्रसादा० -पंचंत० उ० हि० विसे० । यहि० विसे० । बारसक० उ० हि० विसे० । यद्वि० विसे० । एवं एस भंगो धिस ० -सम्मादि० खइग० वेदगस ० -- उवसम० -सम्मामिच्छादिद्विति । ६५०. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीय, स्त्रीवेद और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आगेका अल्पबहुत्व के समान है । यही अल्पबहुत्व विभङ्गज्ञानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कृष्णलेश्यावाले जीवों में नरकायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । ६५१. श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध श्रसंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आहारक शरीरका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे हास्य, रति और यशःकीर्तिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकपाय, दो गति, चार शरीर, अयशः कीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे बारह कपायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार यह अल्पबहुत्व अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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