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________________ परत्याट्ठिदिअप्पाबहुगपरूवणा २९७ यहि विसे० । पंचणोक --देवगदि-तिएिणसरीर-अजस०-उच्चा० उ०ट्टि विसे । यहि विसे । पंचणा-छदंसणा०--असादा०-पंचंत० उ.टि. विसे । यहि० विसे० । चदुसंज० उ०हि० विसे । यहि विसे । ६४८. कम्मइ० सव्वत्थोवा देवगदि-बेउवि० उ०हि । यहि विसे । पुरिस०हस्स--रदि--जसगि० --उच्चा० उ.हि० संखेज । यहि विसे । सादा०--इत्थिवे.मणुसग० उ.हि. विसे० । यहि विसे । पंचपोक०--तिरिक्वग०-तिएिणसरीरअजस०-णीचा० उ०हि. विसे० । यहि विसे० । पंचणा-णवदंसणा-असादापंचंत० उ.हि. विसे । यहि० विसे । सोलसक० उ.हि. विसे०। यहि विसे । मिच्छ० उ०हि. विसे० । यट्टि विसे । ६४६. अवगदवेदे सव्वत्थोवा चदुसंज० उ०हि । यहि. विसे । पंचणा.. चदुदंस०-पंचंत० उ०हि. संखेंजः । यहि० विसे । जसगि०--उच्चा० उ.टि. 'संखेज । यहि विसे० । सादा० उ.ट्टि० विसे । यहि विसे० । है। इससे सातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोक पाय, देवगति, तीन शरीर, अयश-कीर्ति और उच्च गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार संज्वलनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६४८. कार्मणकाययोगी जीवोंमें देवगति और वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेद, हास्य, रति, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीय, स्त्रीवेद और मनुष्यगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच नोकषाय, तिर्यश्चगति, तीन शरीर, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असाता. वेदनीय और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिव विशेष अधिक है। इससे सोलह कपायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितियन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ___ ६४९. अपगतवेदी जीवोंमें चार संज्वलनोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। १ मूलप्रती उ०टी० असंखेज० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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