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________________ हिदिअप्पाबहुगपरूवणा ६१५. जहएणए पगदं । दुवि०--अोघे आदे। ओघे० पंचणा०--वएण०४अगु०४--आदाउज्जो०--णिमि०--तित्थय०--पंचंत० सव्वत्थोवा जह• हिदि । यहि० विसे । सव्वत्थोवा चदुदंस. जहि । यहि विसे । पंचदंस० ज०हि० असंखे । यट्टि विसे० । सव्वत्थोवा सादावे० ज०ट्टि । यहि विसे । असादावे० ज०हि. असंखेज.। यहि विसे। सव्वत्थोवा लोभसंज० जहि । यहि विसे । मायासंज० ज०हि संखेज । यहि विसे० । माणसंज० ज०हि० विसे । यहि० विसे । कोधसंज० ज०हि विसे । यहि विसे० । पुरिस० जहि० संखेज० । यहि विसे० । हसस-रदि-भय-दुगु जहि० असंखेज । यहि विसे । अरदिसोग० ज०हि. विसे । यहि विसे० । णवुस जहि० विसे । यहि विसे । वारसक० ज०हि० विसे । यहि विसे । मिच्छ ० ज हि विसे० । यहि विसे । ६१६. सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० जट्टि । यहि० विसे । णिरयदेवायु० ज०हि० संखेंज । यहि विसे । [ सव्वत्थोवा ] तिरिक्व-मणुसग० ६१५. जघन्यका प्रकरण है उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे पाँच शानावरण, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, आतप, उद्योत, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनका जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चार दर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच दर्शनावरणका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। साता वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्थातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति और शोकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे वारह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६१६. तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नरकायु और देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। तिर्यश्चगति और मनुष्यगतिका जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगतिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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