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________________ २७६ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे विसे० । वेउब्विय अंगो• उक्क हिदि० विसे । यहिदि० विसे० । सव्वत्थोवा वज्जरिस० उक्क डिदि० । यहिदि. विसे०। वज्जणा० उक्क ट्ठिदि० विसे० । यहिदि० विसे० । णारायण उक्क ट्ठिदि. विसे० । यहिदि० विसे० । अद्धणा० उ.हि. विसे० । यहिदि० विसे०। खीलिय०-असंपत्त० उक्क.हि. विसे । यहिदि बिसे । यथा गदि० तथा आणुपुवि० । ६००. सव्वत्थोवा थावरादि०४ उक्क हिदि । यहिदि० विसे० । तप्पडिपक्खाणं उक्क हिदि. विसे । यहिदि. विसे० । एवं पंचिंदिय-तिरिक्व०३ । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तगेसु पंचणा०-णवदंसणा०-ओरालि-तेजा-क-अोरालि. अंगो०--वएण०४-अगु०४--आदाउज्जो०--णिमि०--पंचंत. सव्वत्थोवा उक्क हिदि० । यहिदि० विसे । सव्वत्थोवा पुरिस० उक्क हिदि०। यहिदि० विसे० । इथि. उक्क हिदि० विसे०। यहिदि० विसे । हस्स-रदि० उक्क हिदि विसे । यहिदि. विसे । णवुस०-अरदि-सोग--भय-दु० उक्क०हिदि० विसे । यढिदि० विसे । सोलसक० उक्क.हिदि. विसे । यहिदि विसे । मिच्छ० उक्क हिदि० विसे । यहिदि० विसे । दोआयु० णिरयभंगो। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। वज्रर्षभ नाराचसंहननका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे वज्रनाराच संहननका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नाराचसंहननका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अर्द्धनाराच संहननका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे कोलकसंहनन और असम्प्राप्ताः पाटिका संहननका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । गतियोंका पहले जिस प्रकार अल्पबहुत्व कह आये हैं उसी प्रकार आनुपूर्वियोंका अल्पबहुत्व जानना चाहिए। ६००, स्थावर आदि चारका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च त्रिकके जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्यातकोंमें पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मणशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, आतप, उद्योत, निर्माण और पाँच अन्तराय इनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। पुरुषवेदका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य और रतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा इनका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। दो आयुओंका भङ्ग नारकियोंके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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