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________________ जीव अप्पाबहुगपरूवणा ५८० संजदासजदे असादावे०-अरदि-सोग-अथिर--असुभ-अजस० सव्वत्थोवा उक्क० । जह• संखेंज्ज । अज अणु० असंखेज्ज । सेसाणं सव्वत्थोवा जह। उक्क. असंखें । अज अणु० असंखेज्ज० । रणवरि तित्थय० संखेज्ज । प्रायः णारगभंगो। अोधिदंस०--सम्मादि०--वेदगस०-उवसमसम्मा० अोधिणाणिभंगो । चक्खुदं० तसपज्जत्तभंगो। ५८१. तेऊए मणुसगदिपंचगं सव्वत्थोवा जह० । उक्क० असंखेंज्ज । अज अणु० असंखेंज्ज० । सेसाणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क. असंखेंज । अज०अणु० असंखेज्ज । गवरि इत्थिवेदादिसत्थाणपगदिविसेसो रणादव्यो । एवं पम्माए । [मुक्काए वि एवं चेव ।] णवरि सुक्काए मणुसगदिपंचगं सव्वत्थोवा उक्क हिदिवं० । जह हिदि० संखेज्ज। अज अणु असंखेंज्ज । ५८२. खइगसं० सव्यपगदीणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क० असंखेंज । अज० अणु० असंखेज्ज०। णवरि दोआयु. सव्वहभंगो। णवरि मणुसगदिपंचगं सव्वत्थोवा जह । उक्क० संखेंज्ज । अज अणु० असंखेज्ज । सासणे सव्वपगदीणं सव्व ५८०. संयतासंयत जीवों में असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयश-कीर्ति इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगणे हैं। इनसे अजघन्य अनत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि तीर्थंकर प्रकृतिकी अपेक्षा संख्यातगुणे कहने चाहिए । आयु कर्मका भङ्ग नारकियोंके समान है। अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। चक्षुदर्शनी जीवोंका भङ्ग त्रसपर्याप्त जीवोंके समान है। . ५८१. पीतलेश्यावाले जीवोंमें मनुष्यगति पञ्चककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीय सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक है। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे है । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद आदि स्वस्थान प्रकृतिगत विशेषताको जानना चाहिए । इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवों में भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मनुष्यगति पञ्चककी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तीक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। ५८२.क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों में सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीप असंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि दो आयुओंका भङ्ग सर्वार्थसिद्धिके समान है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति पञ्चककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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