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________________ २७० महावंधे टिदिबंधाहियारे त्थोवा उक्क । जह० असंखें । अज अणु० असंखें । सम्मामि० अोधिभंगो। सगणीसु चदुअआयु० पंचिंदियभंगो । सेसाणं मणुसोघं । एवं जीवअप्पाबहुगं समत्तं छिदिअप्पाबहुगपरूवणा ५८३. हिदिअप्पाबहुगं तिविधं---जहएणयं उक्कस्सयं जहएणुक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं। दुवि०-अोघे आदे०। ओघेण सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा उक्कस्सो द्विदिवंधो । यहिदिबंधो विसेसाधियो । एवं याव अणाहारग त्ति रणेदव्वं । ___५८४. जहण्णए पगदं । दुवि०--अोधे० आदे० । अोघे० सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा जह० हिदि० । यहिदि० विसेसा । एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्यं । ५८५. जहएणुक्कस्सए पगदं । दुविधं--प्रोघे० प्रादे० । अोघे० खवगपगदीणं चदुअआयुगाणं सव्वत्थोवा जहएणयो हिदिवंधो। यहिदिवंधो विसेसा० । उक्कसहिदिबंधो असंखेंजगुणो। यहिदि० विसेसा । सेसाणं सव्वत्थोवा जह० । यहिदि० विसेसा । उक्क हिदि० संखेंज० । यहिदि० विसेसा०। एवं ओघभंगो मणुस०३पंचिंदि०--तस०२--पंचमण --पंचवचि०--कायजोगि--ओरालियका०--इत्थि०-णवूस०कोधादि०४-चक्खुदं०-अचखुदं०-भवसि०-सरिण-अणाहारए त्ति । अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। सासादनसम्यदृष्टि जीवों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुण हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । संज्ञी जीवों में चार आयुओंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य मनुष्योंके समान है । इस प्रकार जीव अल्पवहुत्व समाप्त हुआ। स्थिति अल्पबहत्वप्ररूपणा । ५८३. स्थिति अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है-जघन्य, उत्कृष्ट और जघन्योत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थिति बन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिए । ५८४. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-योघ और श्रादेश । ओघसे सव प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिए। ५८५. जघन्योत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश । योघसे क्षपक प्रकृतियों और चार आयुओका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थिति वन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। शेष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार अोधके समान मनुष्यत्रिक पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, स्त्रीवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, चनुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, संशी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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