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________________ २६८ महाबंधे ट्ठदिबंधाहियारे अज० अणु० असंखेज्ज० । एस० - कोधादि ०४ - अचक्खुर्द ० - भवसि० - आहार० मूलोघं । गदवे० सव्वपगदीरणं सव्वत्थोवा उक्क० । जह० संर्खेज्ज० । संखेंज्ज • 10 | एवं सुहुमसंप० । अज० अणु० ५७६. मदि० - सुद० असं ० - तिरिणले ० - अन्भवसि ० --मिच्छादि० - असरिणति तिरिक्खोघं । विभंगे चदुत्रयु० मुखजोगिभंगो । सेसाणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क० असंखेज्ज० ० । अ० अ० असंखेज्ज० । एवरि सत्थाणपगदिविसेसो यादव्वो । आमि [० - सुद० प्रधि० देवायु० -- आहारदुग - तित्थय० । असादा० - अरदि- सोगअथिर असुभ अजस० सव्वत्थोवा जह० । उक्क० असंखें । अ० अ० असंखेज्ज • । मणुसायु देवोघं । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क ० असंखेज्ज० । अज० अणु संखेज्ज० । मणपज्ज० असादावे ० -- अरदि-सोग-अथिर -- असुभ -- अजस० सव्वत्थोवा जह० । उक्क० संखेंज्ज० । अज० अ० संखेज्ज • ० । सेसाणं [ सव्वत्थोवा ] जह० । उक्क० संखेंज्ज० । जह० अणु संखेज्ज० । वरि आयु० मणुसि० भंगो। एवं संजद- सामाइ० - छेदो०- परिहार० । ० इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, श्रचक्षुदर्शनी, भव्य, और आहारक जीवोंका भङ्ग मूलोघके समान है । अपगतवेदी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्यस्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंके जानना चाहिए । ५७९. मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, श्रसंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवों में अपनी-अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोके समान है । विभङ्ग ज्ञानी जीवोंमें चार आयुओं का भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे है। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि स्वस्थान प्रकृतिगत विशेषता जाननी चाहिए। श्रभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में देवायु, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग श्रधके समान है । सातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। शेष सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनःपर्ययज्ञानी जीवों में असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इतनी विशेषता है कि आयुका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान हैं। इसी प्रकार संयत, सामायिक संयत, छेदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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