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________________ जीवप्पा बहुगपरूवणा २६५ ५७२. तिरिक्खेसु चदुआयु-- वेउब्वियछ० - तिरिक्खग० - तिरिक्खाणु० --उज्जो०पीचा ओघं । सेसाणं सव्वत्थोवा उक्क । जह० अांतगु० । अज०० असंखेज्ज • ० । पंचिंदियतिरिक्ख ०३ सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा उक्क० । जह० संर्खेज्ज० । अज० अणु असंखेज्ज० । पंचिदियतिरिक्ख पज्जत० सव्वपगदीर्णं सव्वत्थोवा उक्क० । जह० असंर्खेज्ज० । अज० अणु० असंखेज्ज० । e 1 ५७३. मणुसेसु खवगपगदीरणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क० संखेंज्ज० । अज० अणु० असंखेज्ज० । णिरय देवायु० - तित्थय ० थोवा उक्क० । जह० संखेज्ज० | ज० ० संखेज्ज० । वेउब्वियछ - सव्वत्थोवा जह० । उक्क संर्खेज्ज० । अज० अणु० संखेज्ज० ० । आहारदुगं घं । सेसाणं सव्वत्थोवा उक्क ० । जह० असंखेज्ज० । अज० अणु० असंखेज्ज० । मणुसपज्जत -- मणुसिणीसु सपिगदीणं खवगपगदी च घं । वरि संखेज्जगुणं कादव्वं । मणुस पज्जत्तेसु पिरयो । ५७४. एईदिए दो यु० श्रघं । तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु० - उज्जो०-णीचा० ५७२ तिर्यञ्चों में चार आयु, वैक्रियिक छह, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रका भङ्ग श्रोघके समान है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव श्रसं ख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च श्रपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थिति बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । 1 ५७३. मनुष्यों में क्षपक प्रकृतियों की जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इसे उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। नरकायु, देवायु और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । वैकियिक छहकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनके अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थिति के बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें असशी सम्बन्धी प्रकृतियों और क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोधके समान है । इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए । मनुष्य पर्यातकों में सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग है । ५७४. एकेन्द्रियोंमें दो आयुओंका भङ्ग ओधके समान है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी उद्योत और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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