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________________ महावंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ५७१. आदेसेण णेरइएसु दोगणं आयु०सव्वत्थोवा उक्क । जह• असंखेज। अज०मणुका असंखज्जगु० । णवरि मणुसायु० संखेंजगुणं कादव्वं । सेसाणं सव्यपगदीणं सव्वत्थोवा जह• ! उक्क० असंखें । अजमणुक्कस्स० असंखेंज । एवं सव्वणिरयाणं । णवरि विदियादि याव छट्टि त्ति इत्थि-णदुंस०--तिरिक्खगदितिग-पंचसंठा०--पंचसंघ०-अप्पसत्य-दूभग-दुस्सर--अणादें--णीचागो० सव्वत्थोवा जह । उक्क० संखेंजगु० । अज०अणु० हिदि० असंखेंज । रणवरि सत्तमाए तिरिक्वगदि०४ णिरयोघं । मणुसग०-मणुसाणु०--उच्चा० तिरिक्खायुभंगो। एवं सव्वदेवाणं । गवरि आणद-पाणद० इत्थि०-णवूस०-पंचसंठा-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०भग-दुस्सर-अणादे०--णीचा सव्वत्थोवा जह० । उक्क० संखेंजगु० । अज अणु. असंखेज्ज । संसाणं सव्वत्थोवा उक० । जह० संखेंज। अज अणु० असंखेंज । एवं उवरिमगेवजा त्ति । अणुदिस-अणुत्तर-सव्वढे मणुसायु० देवोघं । सेसाणं सव्वस्थोवा जह० । उक्क० संखेंज । अज अणु० असंखेज । वरि सबढे संखेंजगु० । ५७१. श्रादेशसे नारकियोंमें दो आयुओंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुको संख्यातगुणा करना चाहिए। शेष सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सव नारकियोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि दूसरी पृथ्वीसे लेकर छठी पृथ्वी तकके नारकियोंमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगतित्रिक, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर,अनादेय और नीचगोत्र इनको जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुण है। इनके अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जोव असंख्यातगण है। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथ्वीमें तिर्यञ्चगतिचतुष्कका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है । तथा मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी ओर उच्चगोत्रका भङ्ग तिर्यञ्चायुके समान है। इसी प्रकार सब देवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अानत और प्राणत कल्प वासी देवों में स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके न्धक जोव संख्यातगुरणे है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं इसी प्रकार उपरिम |वेयक तकके देवोंके जानना चाहिए । अनुदिश, अनुत्तर और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। शेष सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धि में संख्यातगुणे करने चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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