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________________ जीवपाबहुगपरूवणा ० जीवा असंखे । [ एवं ] ओरालियमि० - कम्मइ० मदि० सुद०--असंज० - तिरिणले अब्भवसि०-मिच्छादि ० - अस रिण - अणाहारगे त्ति । वरि ओरालियमि० कम्मइ०अणाहार० देवगदि०४ - - तित्थयरं उक्करसभंगो । सेसाणं णिरयादि याव सरि ति असंर्खेज्ज-संर्खेज्ज-- अांतरासीणं उकस्सभंगो । वरि एइंदिय-वरणप्फेदि --गियोदेसु तिरिक्खायु० श्रघं | २६३ I ५७० अजहरणमणुकस्सए पगदं । दुवि० ओघे० दे० । श्रघे० खवगपगदीगं सव्वत्थोवा जह० जीवा । उक्क० असंखेज्ज० । अजहराणमणुक० अांतगु० । आहारदुर्ग सव्वत्थोवा जह० हिदि० । उक्क० हिदि० संर्खेज्जगु० । अज०म० संखेज्ज० । तिरिणायु० -- वेडब्बियछ० सव्वत्थोवा उक० । जह० असंखेज्ज० । अज० अणु० असंखेज्ज० । तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु० - उज्जो ० - णीचा० सव्वत्थोवा उक्क० । जह० असंखे० । अज० अणु अांतगु० । तित्थय० सव्वत्थोवा उक्क० । जह० संर्खेज्ज० । ज० अणु संखेज्ज० । सेसाणं पंचदंसणावररणादीरणं सव्वत्थोवा उक्क० । जह० अतगु० । अज० अणु संखेज्जगु० । 0 अजघन्य स्थिति के बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार श्रदारिक मिश्रकाय योगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, श्रसंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि श्रदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगति चतुष्क और तीर्थङ्करका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । नरकगति से लेकर संज्ञी तक शेष जितनी मार्गणायें हैं, उनमें असंख्यात, संख्यात और अनन्त राशिवाली मार्गणाओंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय, वनस्पति और निगोद जीवों में तिर्यञ्चायुका भङ्ग श्रोघके समान है । Jain Education International ५७०. जघन्य उत्कृष्ट पबहुत्वका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रघसे क्षपक प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य श्रनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । आहारकद्विककी जघन्य स्थिति के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तीन आयु और वैक्रियिक छहकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके वन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । तीर्थङ्कर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थिति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। शेष पाँच दर्शनावरण आदि प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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