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________________ २६२ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे तिरिणले ०-भवसि० - अब्भवसि ०--मिच्छादि ० - असरिण० - आहार० - अणाहारगे त्ति । raft रालियम ० - कम्मइ० - अणाहार० देवगदि ० ४ - तित्थय० सव्व ० उक्क० जीवा । ० जीवा संखेंज्जगु० । एवरि ओरालियका• तित्थय० अ० द्विदि० संखेज्जगु० । सेस रियादि याव सरिण त्ति एस असंखेज्जाणंतरासीणं तेसिं सव्वत्थोवा उक्क० जीवा । अणु० जीवा असंखेज्ज० । एसु संखेज्जरासिं तेसिं सव्वत्थोवा उक्क० जीवा । अणु० जीवा संर्खेज्जगु० । वरि एइंदि० वणफदि - रिणयोदेसु तिरिक्खायु० ओघं । एवं उकस्सं समत्तं ५६८. जहणए पगदं । दुवि० -- श्रघे० दे० । श्रघे० खवगपगदी तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु० -- उज्जो ० णीचा० सव्वत्थोवा जह० । अज० गु० । सेसारणं जह० सव्वत्थोवा जीवा । अज० असंखेज्ज० । एवरि आहारदुगं तित्थयरं च उकस्सभंगो । एवं श्रोघभंगो कायजोगि - ओरालियका०--एस० - कोधादि०४अचक्खु०- भवसि ० - आहारगे त्ति । ५६६. तिरिक्खे तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु०--उज्जो ० णीचा० सव्वत्थोवा जह० । अज० अांतगु० । सेसाणं सव्वपगदीगं सव्वत्थोवा जह० जीवा । अज० श्रसंज्ञी, श्राहारक और श्रनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में देवगति चतुष्क और तीर्थङ्कर इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इतनी विशेषता है कि श्रदारिककाययोगी जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिकी अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। नरकगति से लेकर संज्ञी तक शेष सब मार्गणाओंमें जो असंख्यात और अनन्त राशिवाली मार्गणायें हैं, उनमें उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । तथा इनमें जो संख्यात राशिवाली मार्गणायें हैं, उनमें उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय, वनस्पति और निगोद जीवों में तिर्यञ्चायुका भङ्ग श्रधके समान है । इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । ५६८. जघन्यका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश | ओघसे क्षपक प्रकृतियाँ, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थिति के बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थिति बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । इतनी विशेषता है कि आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । इसी प्रकार शोधके समान काययोगी, श्रदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, अचतुदर्शनो, भव्य और आहारक जीवों के जानना चाहिए । ५६९. तिर्यञ्चों में तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। शेष सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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