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________________ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सव्वत्थोवा जह० । उक्क० अणंतगु० । अजह. असंखेज्जगु० । सेसाणं सव्वत्थोवा जह । उक्क० संखेंजगु० । अज अणु० असंखेंज । एवं सव्यविगलिंदिय-सव्वपंचकायाणं । पंचिंदिय-तसअपज्ज० पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। ५७५. पंचिंदिय-तस०२ खवगपगदीणं सव्वत्थोवा जह० । उक्क० असंखें। अज अणु० असंखें । पंचदंस०-असादा-मिच्छ०-बारसक---अहणोक-तिरिक्वगदि-मणुसगदि-एइंदि०-पंचिंदि०-ओरालि-तेजा०-क०-छस्संठा--ओरालिअंगो०छस्संघ०--वएण०४-दोआणु०--अगु०४--आदाउज्जो०---दोविहा०-तस०४-थावरादिपंचयुगल-अजस-णिमिणीचा० सव्वत्थोवा उक्क० । जह० असंखेंज० । अज०अणु० असंखेंज । णवरि सेसो णादव्यो । चदुआयु०-वेउव्वियछ० थोवा उक्क० । जह असंखेंज । अज० अणु० असंखेंज्ज० । तिएिणजादि-सुहुमणामाणं अपज्ज०साधार० देवगदिभंगो । आहारदुगं तित्थय. अोघं । ५७६. पंचमण-तिण्णिवचि० चदुअआयु० सव्वत्थोवा उक्क० । जह० असंखें । उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक है। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार सब विकलेन्द्रिय और सब पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तोंके समान है। ५७५. पञ्चेन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जोव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जोव असंख्यातगुणे हैं । पाँच दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, बारह कषाय, आठ नोकषाय, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक आगो. पाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क,दो अानुपूर्वी, अगुरुलधुचतुष्क, पातप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थावर आदि पाँच युगल, अयशःकीति, निमोण और नीचगोत्र इनको उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिके वन्धक जीव असं हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुरणे हैं। इतनी विशेषता है कि शेष अल्पबहुत्व जानना चाहिए । चार आयु और वैक्रियिक छहको उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जोव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इनका भङ्ग देवगतिके समान है। आहारकद्विक और तीर्थकर इनका भङ्ग योधके समान है। ५७६. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में चार आयुओंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सबसे स्तोक है । इनसे जघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यातगुगणे हैं। इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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