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________________ २५६ महाबंधे हिदिबंधाहियारे असंखेंजः । अहक० जह० जह० उक्क० अंतो० । अज० जह• अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेंज । मणुसगदिपंचग० जह• अज० जह० एग• अंतो० । उक्क० पलिदो० असंखेंज्ज०। आहारदुगं जह• अज० जह• एग०, उक्क० अंतो० । तित्थय. जह० जह• एग०, उक० अंतो० । अज. जह० एगसमयं, उक्क० अंतो० । ५५३. सासणे सम्मामि० उक्कस्सभंगो। णवरि सासणे तिरिक्ख-देवायु० जह० जह० एग०, उक्क० श्रावलि. असंखेंज्ज० । अज० जह• अंतो, उक्क० पलिदो० असंखे० । मणुसायु० देवभंगो। ५५४. सगणीसु खवगपगदीणं देवगदि०४--आहारदुग-तित्थय मणुसभंगो । चदुअआयु० पंचिंदियभंगो। सेसाणं जह० जह० एग०, उक्क० आवलि. असंखेंज। अज० सव्वद्धा । एवं जहएणयं समत्तं । एवं कालं समत्तं अंतरपरूवणा ५५५. अंतरं दुविधं । जहएणयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुवि०-अोघे० काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और और उत्कृष्ट काल पल्यके. संख्यातचे भाग प्रमाण है। आठ कषायोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। मनुष्यगति पञ्चककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। आहारक द्विककी ग्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तीर्थङ्कर प्रकृतिको जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ५५३. सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सासादनमें तिर्यञ्चाय और देवायुकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रावलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । मनुष्यायुका भङ्ग देवोंके समान है। ५५४. संधी जीवोंमें क्षपक प्रकृतियाँ, देवगति चतुष्क, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्योंके समान है। चार आयुओका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। इस प्रकार जघन्य काल समाप्त हुआ। इस प्रकार काल समाप्त हुआ। अन्तरप्ररूपणा ५५५. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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