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________________ जहण्णकालपरूषणा २५५ अंतो। अज० सव्वद्धा । देवायु० अोघं । चक्खुदं० तसभंगो। ५५१. तेऊए इत्थि०-णवुस-दोगदि-एइंदि०--ओरालि०-पंचसंठा---छस्संघ०दोआणु० --आदाउज्जो०-अप्पसत्व०-थावर-दृभग-दुस्सर-अणादें-णीचा० जह• जह० एग०, उक्क० पलिदो असंखेंज। अज० सव्वधा । असादा०-अरदि-सोग-अथिरअसुभ-अजस० जह• जह० एगसमयं, उक्क० अंतो० । सेसाणं जह० जह० उक्क० अंतो० । अज० सव्वधा । एवं पम्माए। तेऊए एसिं अप्पमनो करेंति तेसिं दुविधो कालो । यदि अधापवत्तसंजदो जहएणहिदिवंधकालो जह• जह• एग०, उक्क अंतो। अथवा दंसणपोहखवगस्स कीरदि तदो जहएणु० अंतो० । एवं परिहारे । पम्माए देवगदिअादि अधापवत्तस्स दिजदि । एवं मुक्काए वि।। ५५२. उत्सम पंचणा-छदसणा-चदुसंज-पुरिस --भय--दुगु-पंचिंदितेजा-क०-समचदु०-वएण०४-अगु०४-पसत्यवि०-तस०४-सुभग-मुस्सर-आदे-णिमिः उच्चा०-पंचंत• जह० जह एग०, उक० अंतो० । अज० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो. असंखज्ज । सादासाद-हस्स-रदि--अरदि-सोग-थिराथिर-सुभासुभ-जस-अजस०देवगदि०४ जह• जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जह• एग०, उक्क० पलिदो. काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। देवायका भङ्ग ओघके समान है। चनुदर्शनवाले जीवोंका भङ्ग त्रस जीवोंके समान है। ५५१. पीतलेश्यावाले जीवों में स्त्रोवेद, नपुंसकवेद, दो गति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, छह संहनन, दो ग्रानुपूर्वी, पातप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। असाता वेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। अजघन्य स्थितिके वन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोके जानना चाहिए। पीतलेश्याम जिनको मत्त करते हैं उनका दो प्रकारका काल है। यदि अधःप्रवृत्तसंयत करता है तो उसके जघन्य स्थितिके बन्धकका जघन्य काल एक सभय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अथवा दर्शनमोहनीयका क्षपक करता है तो जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । इसी प्रकार परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके जानना चाहिए। पद्मलेश्यावाले जीवोंमें देवगति आदि अधःप्रवृत्तके देनी चाहिए । इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंके भी जानना चाहिए । ५५२, उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्त्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग सुस्वर, श्रादेय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके वन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, हास्य, रति, अरति, शोक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति, अयश-कीर्ति और देवगति चतुष्ककी जघन्य स्थितिके वन्धक जीवांका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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