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________________ २५४ महाबंधे हिदिबंधाहियारे पंचिंदियभंगो। तिरिक्ख-मणुसग०-ओरालि-ओरालि०अंगो०-वज्जरि०-दोबाणु०उज्जो०-णीचा. जह• जह• अंतो० । अज० एग०, उक्क० पलिदो० असंखेंज। अज० सव्वद्धा। ५४८. आभि०-सुद-अोधि० असादा०--अरदि--सोग-अथिर-असुभ-अजस. जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज. सव्वद्धा । सेसाणं जह० जह० उक अंतो० । अजः सव्वद्धा । गवरि मणुसगदिपंचग० जह० जह० एग०, उक० पलिदो० असंखेंज । एवं अोधिदं०-सम्मादि-खइग-वेदग० । गवरि दोआयु देवभंगो । खइगे दोआयु० मणुसि०भंगो । ५४६. मणपज्ज -संजद-सामाइय--छेदो० खवगपदीणं अोघं । असादावे०अरदि-सोग-अथिर--असुभ-अजस० जह० जह० एग०, उक० अंतो० । सेसाणं जह० जहएणु० अंतो। सव्वपगदीणं अज० सव्वद्धा । आयु० मणुसि भंगो। एवं परिहार० । ५५०. संजदासंजदे असादा-अरदि-सोग-अथिर-अमुभ-अजस० जह• जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें। अज० सव्वद्धा ! सेसाणं जह० जह० उक्क० पञ्चेन्द्रियों के समान है। तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन, दो आनुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। ५४८. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में असाता वेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर अशुभ और अयश-कीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। शेष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति पञ्चकको जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि दो आयुओं का भङ्ग देवोंके समान है। क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों में दो आयुओंका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। ५४९. मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयत जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयश-कीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। प्रायुका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके जानना चाहिए। ५५०. संयतासंयत जीवों में असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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