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________________ जहण्णसत्थाणबंधसण्णियासपरूवणा २५३ ५४५. ओरालियमि० तिरिक्खग ०-तिरिक्खाणु० उज्जो ० णीचा ० - देवर्गादि ०४तित्थयरं० उक्कस्सभंगो । मणुसायु० श्रवं । सेसागं जह० ज० सव्वद्धा । वेजव्वि०asव्वयमि०१० - आहार० - आहारमि० उक्कस्सभंगो । कम्मइगे तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु०उज्जो०-णीचा० जह० जह० एग०, उक्क० आवलि० असं० । अज० सव्वद्धा । देवगदि ० ०४ - तित्थय० उक्कस्सभंगो । सेसारणं जह० अ० सव्वद्धा । ५४६. अवगदे सव्वाणं जह० जह० उक० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क ० अंतो० ० । एवं सुहुमसंप० । ५४७. विभंगे पंचणा०-रणवदंसणा०-सादावे०-मिच्छ०- सोलसक० - पंचपोक०देवरादि--पंचिंदि० - वेडव्वि० - तेजा० क० समचदु० - वेड व्वि ० अंगो० - वरण ०४ - देवाणु ०अगु०४ - पसत्थ०-तस०४ - थिरादिछ० रिणमि० उच्चा० पंचंत० जह० जह० उक्क० अंतो॰ | अज० सव्वद्धा । श्रसादा० इत्थि० एस० -अरदि-सोग--गिरयगदि-चदुजादि - पंचसंठा० - पंचसंघ० - णिरयाणु० - अप्पसत्थ० -- आदाव - थावरादि० ४- दूर्भाग- दुस्सर० जह० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें । अज० सव्वद्धा । चदुआयु० ~ Jain Education International ५४५. औदारिक मिश्रकाययोगी जीवों में तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, उद्योत, नीच गोत्र, देवगतिचतुष्क और तीर्थङ्कर इनका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । मनुष्यायुका भङ्ग के समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारक काययोगी, और आहाकमिश्रकाय योगी जीवोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । कार्मणकाययोगी जीवों में तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीच गोत्रकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । देवगति चतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । ५४६. अपगतवेदी जीवोंमें सब प्रकृतियों की जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंके जानना चाहिए । ५४७. विभंगज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, देवगति, पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, वैक्रियिक श्राङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, गुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, उच्चगोत्र, और पाँच अन्तराय इनकी जन्धय स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थिति बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, नरकगति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्र शस्त विहायोगति, तप, स्थावर आदि चार, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। चार श्रायुका भङ्ग - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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