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________________ २५० महाबंधे ट्ठिदिवंधाहियारे ५३८. णिरएसु दोश्रायु० उकस्सभंगो। सेसाणं जह• [ जह• ] एग, उक्क. आवलि. असंखेंज । अज० सव्वद्धा । तित्थय० उकस्सभंगो। एवं पढमपुढवीए । विदियादि याव सत्तमा ति उक्कस्सभंगो। एवरि थीणगिद्धि३-मिच्छत्त-अणंताणुबंधि०४ जह० जह• अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखें । सत्तमाए तिरिक्खगदितिरिक्वाणु०-णीचा० थीणगिद्धिभंगो । ५३६. तिरिक्वेसु णिरय--मणुस--देवायु०-चेउविछ०-तिरिक्रवगदि०४ ओघं । सेसाणं जह० अज० सव्वद्धा । एवं तिरिक्खोघं मदि०-सुद०--असंज०-तिएिणलेअब्भवसि०-मिच्छादि०-असगिण त्ति । सव्वपंचिंदियतिरिक्वाणं उक्कस्सभंगो। णवरि चदुअआयु णिरयायुभंगो। पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्त० दोआयु० तिरिक्वायुभंगो । एवं सव्वअपज्जत्ताणं तसाणं सव्वविगलिंदियाणं बादरपुढ विकाइय-ग्राउतेउ०-वाउ०-बादरवणप्फदिपत्तेयपज्जत्ताणं च । ५४०. मणुसेसु खवगपगदीणं देवगदि०४ जह० जह० उक० अंतो० । अज. ओघं । दोआयु. पंचिंदियतिरिक्खभंगो। दोआयु० जह० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम। अज० जहणणु अंतो । णिरयगदि-णिरयाणु० जह० जह• एग०, ५३८. नारकियों में दो आयुओंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। इसी प्रकार पहली पृथ्वीमें जानना चाहिए। दूसरी पृथ्वीसे लेकर सातवीं तक भङ्ग उत्कृष्टके समान है। इतनी विशेषता है कि स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चार इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। सातवीं पृथ्वीमें तिर्यञ्चग को पृथ्वीमें तिर्यश्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग स्त्यानगृद्धि तीनके समान है। ५३६. तिर्यञ्चोंमें नरकायु, मनुष्यायु, देवायु, वैक्रियिक छह और तिर्यञ्चगति चतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंके समान मत्यज्ञानी, श्रुतीज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंका मङ्ग उत्कृष्टके समान है। इतनी विशेषता है कि चार आयुनोंका भङ्ग नरकायुके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें दो अायुओका भङ्ग तिर्यञ्चायुके समान है। इसी प्रकार सब अपर्याप्त प्रस, सब विकलेन्द्रिय, बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त, वादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायकायिक पर्याप्त और बादरवनस्पति कायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। ५४०. मनुष्योंमें क्षपक प्रकृतियाँ और देवगतिचतुष्ककी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल ओघके समान है। दो आयुओका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। दो आयुगोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मरकगति और नरकगत्यानुपूर्वोकी जघन्य स्थितिके वन्धक जीवोंका जघन्य काल एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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