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________________ जहरण कालपरूवणा २४९ अणु० जह० उक्क० तो ० । एवं सम्मामि० । वरि देवगदि ०४ धुविगाण भंगो । सासणे दोणिण आयु० उक्क० जह० एग०, उक्क संर्खेज्ज० । अणु० जह० एग०, उक्क० पलिदो ० संर्खेज्ज० । अणाहार० कम्मड्गभंगो । एवं उक्कस्सकालं समत्तं 1 ५३७. जहणए पगदं । दुवि० ओघे० दे० । श्रघे० खवगपगदीणं आहारदुर्गं तित्थय० जह० द्विदिबंध० केवचिरं० ? जह० उक्क० अंतो० । अज० सव्वद्धा । तिरिक्खग ०-तिरिक्खाणु० उज्जो० - णीचा० जह० जह० एग०, उक्क० पलिदो ० असं खेंज्ज० ० । अज० सव्वद्धा । तिरिणायु० जह० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंर्खेज्ज० । अज० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेज्ज० । वेउब्वियछ ० उक्करसभंगो । सेसाणं जह० अज० सव्वद्धा । एवं ओघभंगो कायजोगि--ओरालियका० स० कोधादि ० ४ अचक्खुर्द ० -भवसि० - आहारगे त्ति । वरि खवगपगदीगं कायजोगि - ओरालियका० जह० जह० एग० । णवरि जोग-कसाए युगस्स ज० जह० एस० । मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य इसी प्रकार सम्यरमिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। चतुष्कका भङ्ग ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके समान है । युकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनाहारक जीवोंका भङ्ग कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है । और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि देवगति सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें दो इस प्रकार उत्कृष्ट काल समाप्त हुआ । ५३७. जघन्यका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रोघसे क्षपक प्रकृतियाँ, श्राहारकद्विक और तीर्थङ्कर इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका सब काल है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्के श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । श्रजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । तीन आयुकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है। वैक्रियिक छहका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जोवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार ओघके समान काययोगो, औदारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि क्षपक प्रकृतियोंके काययोगी और श्रदारिक काययोगी जीवों में जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है । इतनी विशेषता है कि योग और कषायवाले जीवोंमें आयुकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है । ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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