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________________ २४८ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे 0 अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखे । अणु० सव्वद्धा । एवं संजदासंजदे श्रधिदं० सम्मादि० - वेदग० | ५३५. मणपज्जव० सादावे ० - हस्स-रदि-- आहारदुग - थिर-सुभ-जसगि० उक्क० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अणु० सव्वद्धा । सेसाणं उक्क० जह० उक्क० अंतो० । अणु सव्वद्धा । एवं संजद - सामाइ० - छेदो०- परिहार० । ५३६ . उवसम० पंचरणा० छदंसरणा० - बारसक० - पुरिस०-भय-दुगु - मणुसगदिपंचिदि० ओरालि ० तेजा ० - क००- समचदु० - ओरालि० अंगो० -- वज्जरि ० - वरण ०४-मणुसाणु०-अगु०४-पसत्थवि ० --तस०४- सुभग- सुस्सर आदेज्ज० - गिमि० णीचा० - पंचंत० उक्क० अणु० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेज्ज० । सादावे ० - हस्स-रदि-थिरसुभ- जसगि० उक्क० श्रणु० जह० एग०, उक्क ० पलिदो ० असंर्खेज्जदिभा० । असादा० -अरदि-सोग - अथिर- असुभ अजस० देवगदि०४ उक्क० जह० तो ०, उक्क० पलिदो ० असंखें • ० । श्ररंतु० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखे | आहारदुगं उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क अंतो० । तित्थय० उक० जह० एग०, उक्क० तो ० । प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका सब काल है । इसी प्रकार संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । ५३५. मन:पर्ययज्ञानी जीवोंमें सातावेदनीय, हास्य, रति, श्राहारकद्विक, स्थिर, शुभ और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ठ स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है तथा अनुकृस्थिति बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार संयत, सामायिक संयत छेदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके जानना चाहिए । ५३६. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुवेद, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कर्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, श्रदारिकाङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, गुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, गोत्र और पाँच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । सातावेदनीय, हास्य, रति, स्थिर, शुभ और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । असातावेदनीय, रति, शोक, अस्थिर, अशुभ, अयशः कीर्ति और देवगतिचार, इनकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। आहारकद्विककी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तीर्थङ्कर प्रकृतिक उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्त For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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